छत्तीसगढ़ के मेडिकल कॉलेजों की एमबीबीएस सीट पर 4 नवंबर से काउंसिलिंग शुरू हो गई है।
नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) की गाइडलाइन के तहत 15 नवंबर से कक्षाएं लगनी हैं। फर्स्ट ईयर में एनाटॉमी, फिजियोलॉजी और माइक्रोबॉयोलॉजी की पढ़ाई होगी।
एनाटॉमी में छात्रों को शरीर डिसेक्शन करवाया जाता है, ताकि उन्हें शरीर के हर एक अंग, ऊतक, नसों और शरीर संरचना के बारे में जानकारी मिल सके। इसके लिए मृत शरीर जरूरी है, मगर भास्कर पड़ताल में सामने आया कि इस सत्र में शुरू होने जा रहे कोरबा और महासमुंद कॉलेज के पास डिसेक्शन के लिए बॉडी नहीं है।
महासमुंद को रायपुर कॉलेज से 2, रायगढ़ मेडिकल से 1 जबकि कोरबा को 3 मृत शरीर सिम्स बिलासपुर से मिलेंगी। डिसेक्शन के लिए बॉडी का संकट नया नहीं है। भास्कर ने बीते वर्षों में एडमिशन ले चुके कई कॉलेजों के छात्रों, प्रोफेसर्स से भी संपर्क किया।
इन्होंने बताया कि बिना प्रैक्टिकल शरीर की संरचना को समझना संभव नहीं। इसके लिए मृत शरीर अनिवार्य है। यही वजह थी कि कोरोनाकल में ऑनलाइन पढ़ाई शुरू तो हुई मगर एनएमसी ने स्पष्ट कहा कि छात्रों को प्रैक्टिकल के लिए बुलाएं और रिपोर्टिंग करें। वर्तमान में प्रदेश के किसी मेडिकल कॉलेज में पर्याप्त बॉडी नहीं है। रायपुर में संख्या सर्वाधिक है।
देहदान न होने की ये वजह
1. मृत शरीर में चीर-फाड़ की जाएगी, जन्म के बाद शरीर में निशान होंगे।
2. कुछ समुदाय विशेष में देहदान की कोई व्याख्या नहीं है।
3. शव जलने से ही मुक्ति, दाह-संस्कार नहीं तो आत्मा भटकेगी।
(भास्कर ने विभिन्न समुदायों से बात की, इन्होंने ये तर्क दिए।)
क्या कहती हैं संस्थाएं- रायपुर में शवदान करवाने वाली संस्था बढ़ते कदम के सदस्य धनेश मतलानी कहते हैं- हमारी संस्था 5 सालों में 166 शवदान करवा चुकी है, ये सभी मेडिकल से जुड़े संस्थाओं को मिले हैं। इसके पहले प्रदेश में कभी इतना देहदान नहीं हुआ। भ्रांतियों हैं, इन्हें दूर करने में समय लगेगा।
राज्य शासन से देहदान करवाने में कहां चूक हो रही : जनजागरूकता के लिए राज्य में कोई कैंपेन नहीं चलाया जाता। कोई ऐसी संस्था नहीं है जो समुदाय और परिवारों की काउंसिलिंग करे। मृतक के परिजनों से देहदान के लिए संपर्क करे। एम्स, रायपुर मेडिकल कॉलेज में सैंकड़ों लोगों ने देहदान के फॉर्म भरे हैं। जानकार मानते हैं कि शासन को पहल करते हुए काउंसर नियुक्त करने चाहिए। वार्डों में टीम बनानी चाहिए।टोल फ्री नंबर जारी हो ताकि परिजन मृत्यु के बाद संपर्क कर सकें।
कौन कर सकता है देहदान : देहदान प्राकृतिक मृत्यु के उपरांत किसी भी जाति-धर्म के वयस्क व्यक्ति कर सकते हैं। 18 वर्ष के बाद देहदान का संकल्प लिया जा सकता है। बकायदा मेडिकल कॉलेज में देहदान के लिए संकल्प पत्र भरने की प्रक्रिया है। बतां दें कि नेत्रदान और त्वचा दान के बाद भी देहदान होता है।
वर्चुअल मृत शरीर विकल्प नहीं- भास्कर ने 4 सरकारी मेडिकल कॉलेजों से संपर्क किया, इनमें से किसी के पास पर्याप्त मृत शरीरनहीं है। रायपुर के पास उतनी ही जितने की जरुरत है। बिना शव परीक्षण डॉक्टर बनना संभव नहीं, इसके लिए देहदान चाहिए। वर्चुअलमृत शरीर चलन में हैं, डीकेएस हॉस्पिटल में 2 बॉडी हैं मगर ये मृत शरीर का विकल्प नहीं हैं।
ये कमियां भी… पड़ताल से पता चला कि महासमुंद, कोरबा और कांकेर मेडिकल कॉलेज उधार के भवन में चल रहे हैं। इसके अलावा नए कॉलेजों में एनोटॉमी, बॉयोकमेस्ट्री और फीजियोलॉजी सब्जेक्ट के प्रोफेसर नहीं हैं। इस कमी को दूर करने एनएमसी ने एक साल का समय दिया है।
10-सरकारी कॉलेज 03-निजी कॉलेज 1720-एमबीबीएस सीटें
एनएमसी की गाइड-लाइन के मुताबिक एमबीबीएस के 15 छात्रों के बीच में डिसेक्शन के लिए एक डेड मृत शरीर होनी ही चाहिए। मगर, कॉलेजों में उपलब्धता ही नहीं होती, क्योंकि देहदान नहीं होते और न करवाए जाते हैं। एक मृत शरीर पर मजबूरी में 40-50 छात्रों को प्रैक्टिकल करवाए जाते हैं, जबकि एनाटॉमी में सबसे महत्वपूर्ण पार्ट मृत शरीर डिसेक्शन ही है, यह मेडिकल की पूरी पढ़ाई में काम आता है। छात्र अंगों के बारे में जानेगा ही नहीं तो बेहतर इलाज कैसे कर पाएगा? पहले कम कॉलेज थे, मगर अब हर साल संख्या बढ़ रही है। अगर, देहदान नहीं बढ़े तो समस्या आएगी।