प्रवीण नंगिस (ज्योतिष सलाहकार): शनि की महादशा 19 साल की होती है। व्यक्ति को जीवन में एक बार इस दशा को झेलना पड़ता है।
इसी तरह गुरु की महादशा 16 वर्ष की होती है और इस तरह की महादशायों का व्यक्ति के जीवन पर बहुत प्रभाव पड़ता है।
जातक की कुंडली में महादशाओं का समय लिखा होता है, महादशा के साथ सभी नौ ग्रहों की अंतर्दशा भी होती है। सभी नौ ग्रहों की अंतर्दशा दो से तीन साल के लिए आती रहती है।
जैसे शनि की महादशा के साथ राहु की महादशा दो साल की होती है, इस समय में जातक मानसिक कष्ट से गुजरता है।
हालांकि यह भी जातक की कुंडली और उसमें बैठे ग्रहों की स्थिति पर निर्भर करता है। ऐसा नहीं शनि की महादशा सभी के लिए खराब हो, शनि की महादशा कुंडली के हिसाब से रंक को राजा भी बना सकती है।
यह सब न्यायप्रिय शनि कर्मों के अनुसार जातक को फल देते हैं। शनि की महादशा में शनि की अंतर्दसा भी थोड़ी कष्टकारी कही जा सकती है, शनि की महादशा में शनि की अंतर्दशा दो साल दस महीने की होती है।
शनि एक राशि में लगभग ढाई वर्ष तक रहते हैं। जब गोचर में शनि किसी राशि से चौथे और आठवें स्थान पर होते हैं तो इसे ढैय्या कहते हैं, साढ़ेसाती लगभग साढ़ेसात साल और ढैय्या ढाई साल चलती है। हर किसी के जीवन साढ़ेसाती हर 30 साल वापस जरूर आती है।
सावन का शनिवार इन सभी दशाओं में के उपाय बहुत फलदायी होते हैं। इस समय में कालसर्प योग और रुद्राभिषेक कई तरह से इनके परिणामों में राहत देते हैं।
इसलिए शनि की साढ़ेसाती और महादशाओं से पीडित लोग सावन के शनिवार को भोलेशंकर को प्रसन्न करने के लिए विभिन्न अनुष्ठान करा सकते हैं।