“जिसे दुनिया ने अब तक नहीं माना, उसी तालिबान की चौखट पर अब पाकिस्तान, चीन और ईरान क्यों बढ़ा रहे हैं दोस्ती?…

himaअंतरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा मान्यता न पाने के बावजूद अफगानिस्तान की तालिबान सरकार इन दिनों कूटनीतिक गतिविधियों में बेहद सक्रिय दिख रही है।

अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री आमिर ख़ान मुत्ताक़ी ने बीते कुछ हफ्तों में पाकिस्तान, भारत, ईरान और चीन के साथ उच्च-स्तरीय वार्ताएं की हैं, जिससे यह संकेत मिला है कि तालिबान सरकार को नजरअंदाज करना अब संभव नहीं रहा।

मुत्ताकी की मुलाकातों पर गौर करें यह स्पष्ट हो जाएगा कि पड़ोसी देश तालिबान में दिलचस्पी दिखा रहे हैं।

गौरतलब है कि 19 अप्रैल को पाकिस्तान के उपप्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार ने काबुल का दौरा किया और मुत्ताकी से मुलाकात की।

शरणार्थियों की वापसी, व्यापार और द्विपक्षीय सहयोग पर चर्चा हुई। 6 मई को डार और मुत्ताकी ने फिर से बातचीत की, ठीक उस समय जब भारत और पाकिस्तान के बीच टकराव की स्थिति थी।

भारत ने कश्मीर के पहलगाम हमले का आरोप पाकिस्तान पर लगाया था। 15 मई भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने मुत्ताकी से फोन पर बात की और तालिबान द्वारा पहलगाम हमले की निंदा पर आभार जताया।

17 मई को मुत्ताकी ने ईरान की राजधानी तेहरान का दौरा किया और वहां ईरानी राष्ट्रपति मसूद पेजेश्कियन और विदेश मंत्री अब्बास अराकची से भेंट की।

21 मई को वे बीजिंग पहुंचे जहां चीन, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच त्रिपक्षीय वार्ता हुई, जिसका उद्देश्य व्यापार और सुरक्षा सहयोग बढ़ाना था।

भारत क्यों बढ़ा रहा है तालिबान से रिश्ते?

1996 से 2001 के बीच तालिबान शासन को भारत ने मान्यता नहीं दी थी। भारत ने न केवल अपनी काबुल स्थित दूतावास बंद किया था, बल्कि उत्तरी गठबंधन को समर्थन भी दिया।

लेकिन अब भारत ने यथार्थवादी रुख अपनाते हुए तालिबान से संवाद शुरू किया है। जून 2022 में भारत ने तकनीकी विशेषज्ञों की तैनाती कर काबुल में फिर से अपना मिशन शुरू किया।

जनवरी 2025 में दुबई में भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिसरी और मुत्ताकी की मुलाकात ने दोनों देशों के बीच कूटनीति का नया अध्याय खोला।

पाकिस्तान की रणनीति में बदलाव क्यों?

पहले तालिबान का सबसे बड़ा समर्थक रहा पाकिस्तान अब उनसे नाराज नजर आता है। तालिबान के शासन में पाकिस्तान में आतंकी हमलों में तेजी आई है, जिनके पीछे तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) को जिम्मेदार माना जाता है।

पाकिस्तान का आरोप है कि टीटीपी को अफगानिस्तान में पनाह मिली हुई है। इसके साथ ही पाकिस्तान द्वारा अफगान शरणार्थियों की वापसी और बार-बार सीमा बंद करने के कारण दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ा है।

हालांकि, बीजिंग में चीन की मध्यस्थता में पाकिस्तान और अफगानिस्तान ने राजनयिक संबंधों को फिर बहाल करने का निर्णय लिया है।

ईरान की तालिबान से निकटता का कारण क्या है?

1998 में तालिबान द्वारा मजार-ए-शरीफ में ईरानी राजनयिकों की हत्या के बाद ईरान लगभग युद्ध के कगार पर था। लेकिन अब बदलते क्षेत्रीय परिदृश्य में ईरान ने यथार्थवाद अपनाया है।

ईरान को इस्लामिक स्टेट खुरासान प्रांत से खतरा है, और वह तालिबान के साथ सहयोग कर सुरक्षा बनाए रखना चाहता है। इसके अलावा, व्यापार और 7.8 लाख से अधिक अफगान शरणार्थियों का मसला भी ईरान के हितों में शामिल है।

मई 2023 में पानी के विवाद को लेकर सीमा पर हिंसा हुई थी, लेकिन अब दोनों देश शांतिपूर्वक बातचीत की कोशिश कर रहे हैं।

क्या तालिबान को मान्यता मिलने की संभावना है?

तालिबान के कतर स्थित राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख सुहैल शाहीन का कहना है कि तालिबान अब अफगानिस्तान की हकीकत है और पड़ोसी देशों को इस वास्तविकता को समझते हुए ही उनसे संवाद करना चाहिए।

उन्होंने यह भी कहा कि अब समय आ गया है कि तालिबान को औपचारिक मान्यता दी जाए।

हालांकि, बताया जा रहा है कि यह कूटनीतिक संवाद एक व्यावहारिक जरूरत है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय तालिबान को जल्द मान्यता देने जा रहा है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *