भारत से रिश्ते सुधारेंगे या और बढ़ेगा तनाव? ट्रूडो के उत्तराधिकारी मार्क कार्नी की क्या है रणनीति…

जस्टिन ट्रूडो की जगह लेने जा रहे लिबरल पार्टी के नए नेता मार्क कार्नी कनाडा के अगले प्रधानमंत्री बनने की तैयारी कर रहे हैं।

इसके साथ ही एक बार फिर भारत और कनाडा के बीच तल्ख हुए रिश्तों पर चर्चाएं शुरू हो गई हैं।

खालिस्तानी आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के मामले में ट्रूडो की तरफ से भारत सरकार पर सवालिया निशान लगाने के बाद रिश्तों में तनाव आ गया था।

संभावनाएं जताई जा रही हैं कि कार्नी की एंट्री कनाडा और भारत के रिश्तों के लिहाज से अहम साबित हो सकती है।

भारत के बारे में क्या हैं विचार

लिबरल नेता के चुनाव से पहले ही कार्नी ने संकेत दिए थे कि अगर वह चुने जाते हैं, तो भारत के साथ कारोबारी रिश्ते बेहतर करेंगे। कैलगरी में पत्रकारों से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा था, ‘कनाडा समान विचारधारा वाले देशों के साथ व्यापारिक रिश्तों में विविधता चाहता है।

और भारत के साथ रिश्ते फिर बनाने का मौका है।’ कार्नी से अमेरिका की तरफ से लगाए गए टैरिफ को लेकर सवाल किया गया था।

उन्होंने आगे कहा, ‘वाणिज्य रिश्तों के आसपास मूल्यों की साझा भावना होनी चाहिए। अगर मैं प्रधानमंत्री बनता हूं, तो इसे तैयार करने के मौकों की तलाश करूंगा।’

भारत के लिए क्या मायने

दरअसल, कार्नी पूर्व में ब्रूकफील्ड एसेट मैनेजमेंट के बोर्ड के अध्यक्ष थे। अब कहा जा रहा है कि इसके चलते संभावनाएं हैं कि वह भारत की अर्थव्यवस्था से परिचित होंगे।

कंपनी के प्रवक्ता ने हिन्दुस्तान टाइम्स से बातचीत में बताया कि ब्रूकफील्ड के भारत में अनुमानित 30 बिलियन डॉलर की संपत्तियों का प्रबंधन कर रही है। इनमें रियल एस्टेट, इंफ्रास्ट्रक्चर, रिन्यूऐबल पावर, प्राइवेट इक्विटी और स्पेशल इन्वेस्टमेंट्स शामिल है।

CIF यानी कनाडा इंडिया फाउंडेशन के अध्यक्ष रीतेश मलिक ने अखबार को बताया था, ‘कार्नी अनुभवी अर्थशास्त्री हैं और ब्रूकफील्ड के साथ उनका अनुभवन यह जानता है कि भारत के साथ संबंधों की आर्थिक अहमियत क्या है। मुझे लगता है कि उनकी प्राथमिकता विदेश नीति होगी और वह व्यापार पर खास ध्यान देंगे। भारत और कनाडा के लिए वर्तमान हालात से सबकुछ बेहतर ही होगा।’

साथ ही उन्होंने संभावना जताई है कि कार्नी के नेतृत्व से भारत और कनाडा के रिश्तों को नई दिशा मिल सकती है।

ऐसे हुआ चुनाव

रविवार को हुए चुनाव में लिबरल पार्टी के करीब 1 लाख 52 हजार सदस्यों मतदान में शामिल हुए। इनमें से 86 फीसदी वोट कार्नी को मिले।

इस चुनाव में दूसरे स्थान पर पूर्व वित्त मंत्री क्रिस्टिया फ्रीलैंड रहीं। ट्रूडो की तरफ से लिबरल पार्टी के नेता का पद छोड़े जाने के कारण यह चुनाव सत्तारूढ़ दल को करना पड़े। खास बात है कि इसके साथ ही कनाडा से 9 साल का ट्रूडो राज खत्म होने जा रहा है।

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