अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत के साथ ही वैश्विक व्यापार में एक नया तूफान खड़ा कर दिया है।
उनकी “अमेरिका फर्स्ट” नीति के तहत घोषित रेसिप्रोकल टैरिफ (जवाबी शुल्क) ने दुनिया भर के देशों को अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर कर दिया है।
ट्रंप का कहना है कि जो देश अमेरिकी सामानों पर भारी टैरिफ लगाते हैं, उन्हें अब उसी तरह का जवाबी शुल्क झेलना होगा।
इस घोषणा के बाद कुछ देशों ने ट्रंप के खिलाफ पलटवार की तैयारी शुरू कर दी है, जबकि कुछ डील की तलाश में शांत रुख अपनाए हुए हैं। आइए, इस व्यापार युद्ध के संभावित परिदृश्य को विस्तार से समझते हैं।
ट्रंप का टैरिफ प्लान: एक नजर
ट्रंप ने 2 अप्रैल 2025 से रेसिप्रोकल टैरिफ लागू करने की घोषणा की है। इसका मतलब है कि अगर कोई देश अमेरिकी उत्पादों पर 100% टैरिफ लगाता है, तो अमेरिका भी उस देश के सामानों पर इतना ही शुल्क लगाएगा।
ट्रंप ने भारत, चीन, कनाडा, मैक्सिको, यूरोपीय संघ और जापान जैसे देशों को निशाने पर लिया है, जिनके साथ अमेरिका का व्यापार घाटा लंबे समय से चिंता का विषय रहा है।
इसमें चीन से आयात पर 34 प्रतिशत कर और यूरोपीय संघ (ईयू) और अन्य पर 20 प्रतिशत कर तथा भारत पर व्यापक रूप से 27 प्रतिशत का ‘रियायती जवाबी शुल्क’ लगाया गया है, जिससे वैश्विक अर्थव्यवस्था की संरचना के काफी हद तक ध्वस्त होने और व्यापक व्यापार युद्ध शुरू होने का खतरा है।
ट्रंप का दावा है कि यह नीति अमेरिकी अर्थव्यवस्था को मजबूत करेगी, नौकरियां बचाएगी और घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देगी। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह योजना वैश्विक व्यापार को संतुलित कर पाएगी या एक नए व्यापार युद्ध को जन्म देगी?
किन देशों ने दी जवाबी कार्रवाई की चेतावनी?
टैरिफ योजना 9 अप्रैल से प्रभावी होगी, यानी अमेरिका के व्यापारिक साझेदारों के पास केवल छह दिन हैं ट्रंप प्रशासन से समझौता करने के लिए।
लेकिन कई देश इस योजना के खिलाफ जवाबी टैरिफ लगाने की तैयारी में हैं। कनाडा ने साफ तौर पर कहा है कि वह अमेरिका की इस नीति के खिलाफ जवाबी कार्रवाई करेगा।
यूरोपीय संघ (EU) ने भी तीखा रुख अपनाया है। फ्रांस की सरकारी प्रवक्ता सोफी प्रीमा ने कहा कि EU “व्यापार युद्ध के लिए तैयार” है और अमेरिकी ऑनलाइन सेवाओं पर हमला कर सकता है।
उन्होंने कहा कि EU दो चरणों में प्रतिक्रिया देगा – मध्य अप्रैल तक स्टील और एल्युमिनियम पर शुरुआती जवाबी कार्रवाई, अप्रैल के अंत तक सभी अमेरिकी उत्पादों और सेवाओं पर विस्तृत जवाबी टैरिफ।
चीन ने क्या कहा?
चीन के वाणिज्य मंत्रालय ने कहा कि चीन ‘‘अपने अधिकारों और हितों की रक्षा के लिए दृढ़ता से जवाबी कदम उठाएगा’’। हालांकि चीन ने यह नहीं बताया कि वह इसके जवाब में क्या कदम उठा सकता है।
चीन ने कहा, ‘‘चीन अमेरिका से अपने एकतरफा शुल्क उपायों को तुरंत रद्द करने और समान बातचीत के माध्यम से अपने व्यापारिक भागीदारों के साथ मतभेदों को ठीक से हल करने का आग्रह करता है।’’
ताइवान ने क्या कहा?
पहली बार ऐसा हुआ कि बीजिंग और ताइपे एक ही मंच पर खड़े दिखाई दिए। ताइवान ने टैरिफ को “बेहद अनुचित” बताया। कैबिनेट प्रवक्ता मिशेल ली ने कहा कि ताइपे को ट्रंप द्वारा अपने निर्यात पर 32 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा पर “गहरा खेद” है।
ऑस्ट्रेलिया ने क्या कहा?
आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज ने कहा कि उनके देश पर लगाया गया अमेरिकी शुल्क पूरी तरह से अनुचित है, लेकिन ऑस्ट्रेलिया जवाबी कार्रवाई नहीं करेगा।
दक्षिण प्रशांत क्षेत्र के नॉरफॉक द्वीप पर लगाए गए 29 प्रतिशत शुल्क ने सभी हैरान हैं क्योंकि ऑस्ट्रेलिया के इस क्षेत्र की आबादी महज 2,000 लोगों की है और इसकी अर्थव्यवस्था पर्यटन पर आधारित है।
रफॉक द्वीप के प्रशासक जॉर्ज प्लांट ने बृहस्पतिवार को ‘एसोसिएटेड प्रेस’ (एपी) को बताया, ‘‘जहां तक मेरी जानकारी है, हम अमेरिका को कुछ भी निर्यात नहीं करते हैं।’’
यूरोपीय संघ ने क्या कहा?
यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने यूरोपीय संघ पर नए 20 प्रतिशत टैरिफ पर प्रतिक्रिया देते हुए इस उपाय को “विश्व अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा झटका” बताया।
उन्होंने कहा, “दुनिया भर के लाखों लोगों के लिए इसके परिणाम भयानक होंगे।” उन्होंने कहा कि किराने का सामान, परिवहन और दवाइयों की कीमतें बढ़ जाएंगी।
4. कनाडा और मैक्सिको को छूट
ट्रंप ने अपने ताजा टैरिफ में कनाडा और मैक्सिको को छूट दी है। लेकिन इसके बावजूद कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने सोशल मीडिया पर लिखा, “इस संकट के दौरान, हमें उद्देश्यपूर्ण तरीके से काम करना चाहिए।” उन्होंने कहा, “मेरी सरकार अमेरिकी टैरिफ का विरोध करेगी।”
कनाडा के प्रधानमंत्री मार्क कार्नी ने कहा कि देश अमेरिकी आयात शुल्कों का जवाब जवाबी उपायों से देगा।
कार्नी ने संवाददाताओं से कहा, ”हम इन शुल्कों का जवाब जवाबी उपायों से देंगे।” कनाडा अमेरिका का सबसे करीबी व्यापारिक साझेदार है और अपने 76% निर्यात अमेरिका को भेजता है।
कौन से देश रखेंगे संयम?
मैक्सिको की राष्ट्रपति क्लाउडिया शीनबाम ने कहा है कि उनका देश “टिट-फॉर-टैट” टैरिफ लगाने से बचेगा और बातचीत को प्राथमिकता देगा।
ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीयर स्टारमर ने भी तत्काल प्रतिक्रिया से इनकार किया है और कहा कि “आने वाले दिनों में हम शांत और सोच-समझ कर फैसला करेंगे।”
ब्रिटेन के व्यापार मंत्री जोनाथन रेनॉल्ड्स ने संसद को बताया कि वेस्टमिंस्टर और वॉशिंगटन के बीच इस मुद्दे पर बातचीत चल रही है, ताकि ब्रिटेन पर लगने वाले टैरिफ को रोका या कम किया जा सके।
भारत सहित एशिया के कई देशों की स्थिति भी सतर्क है। चीन को छोड़कर बाकी देशों के लिए अमेरिका के खिलाफ कदम उठाना कठिन है क्योंकि उनकी अर्थव्यवस्थाएं काफी हद तक अमेरिकी बाजार पर निर्भर हैं।
अल-जजीरा की रिपोर्ट के मुताबिक, लंदन स्थित आर्थिक रिसर्च फर्म TS Lombard के मैनेजिंग डायरेक्टर डारियो पर्किन्स ने कहा कि “अधिकतर देश जवाबी टैरिफ के बजाय अन्य नीतिगत उपाय अपनाएंगे।”
उनके अनुसार, “केंद्रीय बैंक ब्याज दरों में कटौती कर अर्थव्यवस्था को गति देने की कोशिश करेंगे।” हालांकि उन्होंने चेतावनी दी कि “वैश्विक व्यापार कमजोर होगा, अंतरराष्ट्रीय सप्लाई चेन सिकुड़ेंगी और बहुपक्षीय युग समाप्ति की ओर बढ़ रहा है।”
डील की तलाश में भारत और ब्रिटेन
भारत के लिए ट्रंप का टैरिफ एक दोधारी तलवार है। ट्रंप ने कई बार भारत को “टैरिफ किंग” कहकर निशाना बनाया है, खासकर ऑटोमोबाइल और कृषि उत्पादों पर 100% से ज्यादा शुल्क को लेकर।
अब अमेरिका भारत से आने वाले सामानों पर 27% टैरिफ की बात कर रहा है। लेकिन भारत ने जवाबी हमले के बजाय बातचीत का रास्ता चुना है। सूत्रों के मुताबिक, भारत टैरिफ में कटौती की पेशकश कर सकता है, ताकि अमेरिका के साथ व्यापारिक रिश्ते बिगड़ने से बचें। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर भारत स्मार्ट डील कर पाया, तो यह उसके लिए अमेरिकी बाजार में नई संभावनाएं खोल सकता है।
ब्रेक्जिट के बाद से ही ब्रिटेन अपनी वैश्विक व्यापारिक स्थिति को मजबूत करने की कोशिश में है। ट्रंप के टैरिफ से ब्रिटेन भी प्रभावित हो सकता है, लेकिन वह इसे अमेरिका के साथ एक मुक्त व्यापार समझौते (FTA) के अवसर के रूप में देख रहा है।
ब्रिटिश सरकार ने संकेत दिए हैं कि वह टैरिफ कम करने और अमेरिकी निवेश को आकर्षित करने के लिए तैयार है। यह रणनीति ब्रिटेन को व्यापार युद्ध के नुकसान से बचा सकती है।
भारत के लिए चुनौती और अवसर
भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने निर्यात को बचाने की है। अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, और 2023 में दोनों देशों के बीच व्यापार 190 अरब डॉलर को पार कर गया था।
टैरिफ बढ़ने से भारतीय जेनेरिक दवाएं, कपड़ा और फुटवियर उद्योग प्रभावित हो सकते हैं।
लेकिन अगर भारत टैरिफ में कटौती और डील पर सहमत हो पाया, तो यह अमेरिकी बाजार में उसकी पैठ को और मजबूत कर सकता है। साथ ही, चीन पर बढ़ते टैरिफ से भारत को सप्लाई चेन में नया मौका मिल सकता है।