शुक्र प्रदोष व्रत कल: जानिए तीन मित्रों से जुड़ी पौराणिक कथा और इसका धार्मिक महत्व…

 प्रवीण नांगिया (ज्योतिष सलाहकार):

हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है। प्रदोष व्रत भगवान शिव को समर्पित है। इस दिन भगवान शंकर की विधिवत पूजा करने के साथ ही व्रत का पाठ करना शुभ माना गया है।

शुक्रवार के दिन पड़ने वाले व्रत को शुक्र प्रदोष व्रत कहा जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को शुक्र प्रदोष व्रत रखा जाएगा।

शुक्र प्रदोष व्रत 09 मई 2025 को है। मान्यता है कि प्रदोष व्रत शिव पूजन व कथा सुनने के बाद ही पूर्ण होता है। आप भी यहां पढ़ें शुक्र प्रदोष व्रत की कथा-

शुक्र प्रदोष व्रत कथा- प्राचीन काल की बात है कि एक नगर में तीन मित्र रहते थे, तीनों में ही घनिष्ठ मित्रता थी।

उनमें एक राजकुमार पुत्र, दूसरा ब्राह्मण पुत्र और तीसरा सेठ पुत्र था। राजकुमार व ब्राह्मण पुत्र का विवाह हो चुका था। सेठ पुत्र का विवाह के बाद गौना नहीं हुआ था।

एक दिन तीनों मित्र आपस में स्त्रियों की चर्चा कर रहे थे। ब्राह्मण पुत्र ने नारियों की प्रशंसा करते हुए कहा, ‘नारीहीन घर भूतों का डेरा होता है।’

सेठ पुत्र ने यह वचन सुनकर अपनी पत्नी को तुरंत लाने का निश्चय किया। सेठ पुत्र अपने घर गया और अपने माता-पिता से अपना निश्चय बताया।

उन्होंने बेटे से कहा कि शुक्र देवता डूबे हुए हैं। इन दिनों बहू-बेटियों को उनके घर से विदाकर लाना शुभ नहीं होता है, शुक्रोदय के बाद तुम अपनी पत्नी विदा करा लाना।

सेठ पुत्र अपनी जिद से टस से मस नहीं हुआ और अपनी ससुराल जा पहुंचा। सास-ससुर को उसके इरादे का पता चला। उन्होंने समझाने की कोशिश कि लेकिन वह नहीं माना। आखिर में उन्हें विवेश होकर अपनी कन्या को विदा करना पड़ा।

ससुराल से विदा होकर पति-पत्नी नगर से बाहर निकले ही थे कि उनकी बैलगाड़ी का पहिया टूट गया और बैल की टांग टूट गई। पत्नी को कभी काफी चोट आई।

सेठ पुत्र ने आगे चलने का प्रयत्न जारी रखा तभी डाकुओं से भेंट हो गई वे धन-धान्य लूटकर ले गए।

सेठ का पुत्र पत्नी सहित रोता पीटता घर पहुंचा। घर जाते ही उसे सांप ने डस लिया। उसके पिता ने वैद्यों को बुलाया। उन्होंने देखने के बाद बताया कि आपका पुत्र तीन दिन में मर जाएगा।

उसी समय इस घटना का पता ब्राह्मण पुत्र को लगा। उसने सेठ से कहा कि आप अपने लड़के को पत्नी सहित बहू तो घर वापस भेज दो। यह सारी बाधाएं इसलिए आई हैं कि आपका पुत्र शुक्रास्त में पत्नी को विदा करा लाया है। अगर वह वहां पहुंच जाएगा तो बच जाएगा।

सेठ को ब्राह्मण पुत्र की बात जंच गई और अपनी पुत्रवधू और पुत्र को वापिस लौटा दिया। वहां पहुंचे ही सेठ पुत्र की हालत ठीक होनी आरंभ हो गई। इसके बाद उन्होंने शेष जीवन सुख आनंदपूर्वक व्यतीत किया और अंत में वह पति-पत्नी दोनों स्वर्ग लोक को गए।

इस आलेख में दी गई जानकारियों पर हम यह दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं। इन्हें अपनाने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।

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