अमेरिका के जार्जटाउन यूनिवर्सिटी में रिसर्चर बादर खान शूरी को अमेरिकी कोर्ट से राहत मिली है।
कोर्ट ने सूरी के निर्वासन पर अस्थाई रोक लगा दी है। सूरी के ऊपर आरोप था कि उसने हमास समर्थक काम किए थे और सोशल मीडिया पर एंटी सेमिटिज्म को बढ़ाने का प्रयास किया था।
सूरी की गिरफ्तारी ऐसे समय में की गई है जब अमेरिका अकादमिक जगत में यह आशंका बढ़ गई है कि अमेरिकी राष्ट्र्पति डोनाल्ड ट्रंप के नए कार्यकाल में रिसर्च और फ्रीडम ऑफ स्पीट को चुनौती दी जा रही है।
सूरी की गिरफ्तारी को चुनौती देते हुए, वकील ने उनकी रिहाई की मांग की। वकील ने गिरफ्तारी की निंदा करते हुए इसे टारगेटेड और बदला लेने के उद्देश्य से की गई कार्रवाई बताया।
वकील ने दलील दी कि इसका एकमात्र उद्देश्य ऐसे लोगों की आवाज को दबाना है जो फिलिस्तीनी अधिकारों का समर्थन करते हैं।
वकील की दलील के बाद जज पेट्रीसिया, टोलिवर जाइल्स ने आदेश जारी करते हुए कहा कि सूरी को तब तक संयुक्त राष्ट्र् अमेरिका से नहीं निकाला जाएगा जब तक की अदालत इसके खिलाफ ऐसा कोई आदेश जारी नहीं करती है।
जॉर्ज टाउन यूनिवर्सिटी ने एक बयान जारी करते हुए कहा कि सूरी एक भारतीय नागरिक हैं। उन्हें इराक और अफगानिस्तान में शांति स्थापना पर अपने रिसर्च को जारी रखने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रवेश दिया गया है।
वह पूरी तरह से वीजा के जरिए यहां पर आए हैं। यूनिवर्सिटी को उनके किसी भी अवैध गतिविधि में शामिल होने की जानकारी नहीं है और न ही यूनिवर्सिटी को ऐसा कोई कारण मिला है, जिसकी वजह से उनकी गिरफ्तारी हो सके।
वहीं अमेरिकी अधिकारियों की माने तो सूरी को एक अमेरिकी कानून के तहत गिरफ्तार किया गया है। यह कानून निर्वासन की अनुमित देता है।
सूरी पर आरोप है कि उन्होंने हमास की प्रचार सामग्री और सोशल मीडिया पर एंटी सेमिटिजम को बढावा देने का प्रयास किया है।
इतना ही नहीं उनके ऊपर हमास के एक वरिष्ठ सलाहकार से करीबी संबंध होने का भी आरोप है।
आपको बता दें कि सूरी की पत्नी एक मफाज सालेह एक फिलिस्तीनी नागरिक हैं और उनके पिता अहमद यूसुफ हमास के एक वरिष्ठ राजनीतिक सलाहकार माने जाते हैं।