प्रवीण नांगिया (ज्योतिष सलाहकार):
कामदा एकादशी रामनवमी के बाद ग्यारस तिथि पर मनाई जाती है। इस बार कामदा एकादशी का व्रत 8 अप्रैल को रखा जाएगा।
कामदा एकादशी का मतलब है, सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने वाला। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। दशमी के दिन एक ही समय भोजन करें। इस कथा का संबंध पुंडरीक से है।
धर्मराज युद्धिष्ठर ने भगवान कृष्ण से प्रार्थना की कि हे महाराज, अब मेरी अच्छा चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी के नाम, महात्म., पूजा विधान आदि के बारे में विस्तार से जानने की है। तब भगवान कृष्ण ने रहा, हे राजन यही प्रश्न एक बार दिलीप महाराज ने महर्षि वशिष्ठ जी से किया था।
वही मैं आपको सुनाता हूं-बहुत समय पहले की बात है। रत्मपुर नगर में अनेक ऐश्वर्यों से युक्त था। रत्नपुर नगर में अनेक अप्सरा, किन्नर और गंधर्व वास करते थे। उनमें ललित और ललिता नाम पति-पत्नी भी थे।
पुंडरीक भोंगीपुर नगर में रहता है। राजा प्रजा का ध्यान नहीं रखता था और हर वक्त भोग-विलास में डूबा रहता। ललित राजा के यहां संगीत सुनाता था, एक दिन राजा की सभा में ललित संगीत सुना रहा था कि तभी उसका ध्यान अपनी पत्नी की ओर चला गया और उसका स्वर बिगड़ गया। इसे देखकरराजा पुंडरीक का क्रोध सातवें आसमान पर पहुंच गया।
राजा इतना क्रोधित हुआ कि उसने क्रोध में आकर ललित को राक्षस बनने का श्राप दे दिया। राजा के श्राप से ललित मांस खाने वाला राक्षस बन गया।
अपने पति का हाल देख ललिता बहुत दुखी हुई। पुंडरीक के श्राप से वो भयंकर ने, सूर्य और चंद्रमा की तरह प्रदीप्त और मुख से अग्मि निकलने लगी। सिर के बाल पर्वत पर खड़े वृक्षों के समान और भजुाएं लंबी हो गई।
शरीर आठयोजन लंबा हो गया। वह राक्षस बनकर अनेक कष्टों को भोगता हुआ जंगल में भटकने लगा। उसकी स्त्री ललिता भी उसे साथ जंगल-जगंल भटक रही थी। एक दिन वह विध्यांचल पर्वत पहुंची, जहां उसे श्ऱंगी ऋषि मिले । उन्होंने उसका हाल पूछा।
तब ललिता ने कहा कि मेरा नाम ललिता है, और राजा पुंडरीक के श्राप से मेरा पति विशालकाय राक्षस बन गया। उसने अपने पति के उद्धार का उपाय पुंडरीक से पूछा। ऋषि बोले -गंधर्व कन्या अब कामदा एकाधसी आने वाली है।
अगर तू कामदा एकादशी का व्रत करके उसका पुण्य अपने पति को दे दे, तो राजा ता श्राप शांत हो जाएगा और तेरा पति ठीक हो जाएगा।
इस प्रकार ललिता ने व्रत किया और उसके फल से उसका पति ठीक हो गया। वशिष्ट मुनि ने आगे कहा- हे राजन इस व्रत को विधिपूर्वक करने से समस्त पापों का नाश हो जाता है। संसार में इसके बराबर कोई व्रत नहीं है।