यह आखिरी मौका है, नई अदालतें बनाकर जल्द सुनवाई शुरू करो वरना… केंद्र और महाराष्ट्र सरकार पर भड़का सुप्रीम कोर्ट…

राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) द्वारा जांच किए गए आतंकवाद और जघन्य अपराधों से संबंधित मामलों में सुनवाई में देरी पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कड़ा रुख अपनाया।

कोर्ट ने मौजूदा अदालतों को NIA मामलों के लिए विशेष अदालत के रूप में नामित करने की प्रथा को अस्वीकार्य बताया। शीर्ष अदालत ने केंद्र तथा महाराष्ट्र सरकार को सितंबर तक नई विशेष NIA अदालतें स्थापित करने का अल्टिमेटम दिया है।

सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी दी कि अगर इस निर्देश का पालन नहीं किया गया, तो सुनवाई में देरी के आधार पर वह खुद इन आरोपियों को जमानत देने पर विचार करेगा।

कोर्ट ने साफ कहा कि पहले से मौजूद दीवानी और फौजदारी मामलों की सुनवाई कर रही अदालतों को ‘विशेष एनआईए अदालत’ के रूप में नामित करना अस्वीकार्य है।

कोर्ट ने केंद्र सरकार और महाराष्ट्र सरकार को 30 सितंबर तक इन मामलों की सुनवाई के लिए विशेष रूप से नई अदालतें गठित करने का अंतिम मौका दिया।

रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्य बागची की पीठ ने सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल राजकुमार बी. ठाकरे से कहा, “आप मौजूदा अदालतों को अतिरिक्त बोझ नहीं दे सकते।

अगर आप वाकई एनआईए द्वारा जांच किए गए मामलों की शीघ्र सुनवाई चाहते हैं, तो नई अदालतें बनानी होंगी, वरिष्ठ न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति करनी होगी और उन्हें पर्याप्त स्टाफ व पर्याप्त बुनियादी ढांचा उपलब्ध कराना होगा।”

पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि सरकारें ऐसा करने में विफल रहीं, तो कोर्ट आरोपियों को ट्रायल में देरी के आधार पर जमानत देने पर मजबूर हो जाएगी।

छह साल से बिना ट्रायल जेल में बंद

यह मामला तब सामने आया जब वरिष्ठ अधिवक्ता त्रिदीप पाइस ने अपने मुवक्किल कैलाश रामचंदानी की ओर से तर्क दिया कि उन्हें गैरकानूनी गतिविधियां (निवारण) अधिनियम (UAPA) के तहत NIA द्वारा गिरफ्तार किया गया था और पिछले छह वर्षों से जेल में हैं, लेकिन उनकी सुनवाई शुरू नहीं हुई है।

कारण यह है कि विशेष अदालत में कार्यरत न्यायिक अधिकारी के पास इन मामलों के लिए समय नहीं है। पीठ ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल राजकुमार बी ठाकरे को बताया कि यह केंद्र और महाराष्ट्र सरकारों के लिए ऐसी नई विशेष अदालतें स्थापित करने का आखिरी मौका है, जो केवल NIA मामलों को संभालेंगी।

एनआईए का हलफनामा खारिज

कोर्ट ने एनआईए के उस हलफनामे को भी खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुपालन में विशेष अदालतें स्थापित की गई हैं। कोर्ट ने कहा कि यह केवल दिखावे की कार्रवाई है, जमीनी स्तर पर कोई प्रभावी या ठोस कदम नहीं उठाया गया है।

पहले के आदेश में भी जताई थी चिंता

इससे पहले अपने एक आदेश में जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा था कि देश के विभिन्न हिस्सों में यूएपीए, विस्फोटक अधिनियम, मकोका और अन्य विशेष कानूनों के तहत सैकड़ों मामले लंबित हैं।

परंतु इनका ट्रायल शुरू नहीं हो पा रहा है क्योंकि संबंधित न्यायिक अधिकारी अन्य दीवानी और आपराधिक मामलों में भी व्यस्त हैं।

कोर्ट ने यह भी कहा था, “जब कोई नया कानून लाया जाता है, तो उससे उत्पन्न होने वाले मामलों का कोई न्यायिक ऑडिट नहीं होता। इसका परिणाम यह होता है कि गंभीर अपराधों के ट्रायल में देरी होती है और मौजूदा न्यायिक व्यवस्था पर अत्यधिक बोझ पड़ता है।”

“हर दिन सुनवाई होनी चाहिए”

कोर्ट ने दो टूक कहा था कि इन मामलों की त्वरित सुनवाई के लिए एकमात्र प्रभावी उपाय यह है कि विशेष कानूनों के तहत आने वाले मामलों के लिए समर्पित अदालतें बनाई जाएं, जिन्हें कोई अन्य दीवानी या आपराधिक मामला न सौंपा जाए।

आदर्श स्थिति में, इन मामलों की सुनवाई हर दिन होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के इस कड़े रुख से स्पष्ट है कि अब केंद्र और राज्य सरकारों को इस दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे, अन्यथा जमानत पर रिहाई का रास्ता खुल सकता है- जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों की गंभीरता प्रभावित हो सकती है।

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