मद्रास हाई कोर्ट ने हाल ही में अपने एक अहम फैसले में कहा है कि जाति तो इंसानों ने बनाई है।
ईश्वर तो तटस्थ हैं और उनके सामने सभी बराबर हैं।
हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि अनुसूचित जाति (SC) के लोगों को मंदिरों में पूजा-अर्चना करने के अधिकार से वंचित करना उनकी गरिमा का अपमान है। इसके साथ ही अदालत ने SC समुदाय के श्रद्धालुओं को मंदिर में प्रवेश करने की इजाजत दे दी।
दरअसल, हाई कोर्ट अनुसूचित जाति समुदाय के सदस्यों की उस अर्जी पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें अरुलमिगु पुथुकुडी अय्यनार मंदिर में प्रवेश करने और 16 से 31 जुलाई तक चलने वाले रथ उत्सव में भाग लेने की अनुमति मांगी गई थी।
जस्टिस एन आनंद वेंकटेश ने कहा कि अगर कोई मंदिर जनता के लिए खुला है, तो उसे जाति की परवाह किए बिना और भेदभाव किए बिना सभी को वहां प्रवेश की अनुमति दी जानी चाहिए।
जाति और समुदाय इंसानों ने बनाई हैं
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस एन आनंद वेंकटेश ने अपने फैसले में कहा, “जाति और समुदाय इंसानों ने बनाई हैं।
ईश्वर को हमेशा तटस्थ माना जाता है। इसके अलावा, अनुसूचित जाति समुदाय से संबंधित होने के आधार पर लोगों को पूजा-अर्चना करने से रोकना, उन लोगों की गरिमा का अपमान है, जिनके साथ उनकी जाति के आधार पर भेदभाव किया जाता है। ऐसे देश में, जहाँ कानून का शासन है, इसकी अनुमति कभी नहीं दी जा सकती।”
मंदिरों में प्रवेश करने से रोकना उसकी गरिमा का उल्लंघन
अपने फैसले में पीठ ने कहा कि जाति के आधार पर किसी को भी मंदिरों में प्रवेश करने से रोकना उसकी गरिमा और कानूनी अधिकारों का उल्लंघन है।
पीठ ने अपने फैसले में तमिलनाडु मंदिर प्रवेश प्राधिकरण अधिनियम, 1947 का भी हवाला दिया, जो सभी हिंदुओं को मंदिरों में प्रवेश और पूजा करने का अधिकार सुनिश्चित करता है।
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा,”यह अधिनियम कई नेताओं के लंबे संघर्ष के बाद लागू हुआ, जो यह सुनिश्चित करना चाहते थे कि लोगों को उनकी जाति के आधार पर मंदिरों में प्रवेश करने से न रोका जाए।
यह अधिनियम राज्य सरकार द्वारा राज्य में हिंदू मंदिरों में प्रवेश के विरुद्ध हिंदुओं के कुछ वर्गों पर लगाई गई बाधाओं को दूर करने के लिए अपनाई गई नीति के रूप में लागू किया गया था।”