गरीब विचाराधीन कैदियों की जमानत राशि अब सरकार करेगी वहन, सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया अहम फैसला…

सुप्रीम कोर्ट ने एक अनूठी SOP तैयार की है, जिसमें निर्देश दिया गया कि अगर कोई गरीब व्यक्ति जमानत के लिए आर्थिक गारंटी देने में असमर्थ है, तो सरकार जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA) के जरिए इसे मुहैया करेगी।

इस तरह उसकी रिहाई सुनिश्चित की जाएगी। अदालत ने यह एसओपी सीनियर वकील सिद्धार्थ लूथरा और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी के सुझावों के बाद तैयार की।

यह मामला एससी ने स्वतः संज्ञान में लिया, जब उसे पता चला कि हजारों विचाराधीन कैदी जमानत मिलने के बावजूद केवल इसलिए जेल में बंद हैं क्योंकि वे जमानत बांड या गारंटर प्रदान नहीं कर पा रहे हैं।

जज एमएम सुंदरेश और एससी शर्मा की पीठ ने कहा कि DLSA एक लाख रुपये तक की जमानत राशि भर सकता है। अगर ट्रायल कोर्ट ने इससे अधिक राशि तय की है, तो डीएलएसए इसे कम करने के लिए आवेदन दायर करेगा।

पीठ ने कहा कि अगर जमानत मिलने के 7 दिनों के भीतर विचाराधीन कैदी को रिहा नहीं किया जाता, तो जेल प्रशासन DLSA सचिव को सूचित करेगा।

सचिव तुरंत एक व्यक्ति को यह जांचने के लिए नियुक्त करेगा कि क्या कैदी के पास अपने बचत खाते में धनराशि है। यदि आरोपी के पास पैसे नहीं हैं, तो जिला स्तर की सशक्त समिति DLSA की सिफारिश पर 5 दिनों के भीतर जमानत के लिए धनराशि जारी करने का निर्देश देगी।

अदालत ने अपने फैसले में क्या कहा

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘ऐसे मामलों में जहां सशक्त समिति यह सिफारिश करती है कि विचाराधीन कैदी को गरीब कैदियों के लिए सहायता योजना के तहत वित्तीय सहायता दी जाए, तो प्रति कैदी के लिए 50 हजार रुपये तक की आवश्यक राशि को निकालकर संबंधित कोर्ट को फिक्स्ड डिपॉजिट दिया जाएगा।

या फिर, जिला समिति की ओर से उचित समझे गए किसी अन्य तरीके से पांच दिनों के भीतर इसे उपलब्ध कराना होगा, जो कि आपराधिक न्याय प्रणाली में एकीकरण तक लंबित रहेगा।’

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