राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने सोमवार को कहा कि उसने 22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले में शामिल तीन पाकिस्तानी आतंकियों की पहचान से संबंधित “पुख्ता सबूत” जुटा लिए हैं।
एजेंसी ने बताया कि यह सबूत चश्मदीद गवाहों की गवाही, वीडियो फुटेज, तकनीकी साक्ष्यों और जम्मू-कश्मीर पुलिस द्वारा जारी किए गए स्केच पर आधारित हैं।
हालांकि एनआईए ने इन आतंकवादियों के नामों का खुलासा नहीं किया है। एजेंसी ने कहा कि उनकी पहचान और अन्य विवरण “उचित समय पर” सार्वजनिक किए जाएंगे। साथ ही मीडिया में चल रही खबरों और सोशल मीडिया पोस्टों को “भ्रामक और असत्य” करार दिया गया है।
एनआईए की ओर से जारी बयान में कहा गया है, “एनआईए ने आतंकियों की पहचान को लेकर चश्मदीद गवाहों के बयान, वीडियो फुटेज, तकनीकी साक्ष्य और पुलिस स्केच सहित कई अहम सबूत जुटाए हैं। इन सभी साक्ष्यों का गहन विश्लेषण किया जा रहा है और एजेंसी फिलहाल किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंची है।”
इस बयान से एक दिन पहले रविवार को एनआईए ने दो लोगों को गिरफ्तार किया था, जिन पर हमले में शामिल आतंकियों को पनाह देने का आरोप है। सोमवार को जम्मू की एक स्थानीय अदालत ने पहलगाम के रहने वाले दोनों आरोपियों- परवेज अहमद जोठार और बशीर अहमद जोठार को 5 दिन की एनआईए हिरासत में भेज दिया है।
एनआईए के मुताबिक, “22 जून 2025 को जारी आधिकारिक प्रेस विज्ञप्ति में स्पष्ट किया गया था कि दो आरोपियों को हमले के संबंध में गिरफ्तार किया गया है। पूछताछ के दौरान इन आरोपियों ने तीनों आतंकवादियों की पहचान और अन्य महत्वपूर्ण जानकारी साझा की है।”
एनआईए के अनुसार, परवेज और बशीर ने हमले से पहले आतंकियों को पहलगाम के हिल पार्क इलाके में एक मौसमी ‘ढोक’ (झोपड़ी) में शरण दी थी। उन्होंने आतंकियों को भोजन, आश्रय और अन्य लॉजिस्टिक सहायता भी दी। जांच में यह भी सामने आया है कि इन आतंकियों ने धार्मिक पहचान के आधार पर पर्यटकों को निशाना बनाकर मार डाला।
पूछताछ में दोनों आरोपियों ने यह भी स्वीकार किया है कि हमले में शामिल तीनों आतंकी पाकिस्तान से थे और प्रतिबंधित आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा (LeT) से जुड़े थे। इस हमले की जिम्मेदारी द रेजिस्टेंस फ्रंट (TRF) ने ली थी, जो भारतीय एजेंसियों के मुताबिक लश्कर-ए-तैयबा का ही एक मुखौटा संगठन है जिसे पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों से बचने के लिए इस्तेमाल करता है।
जांच एजेंसियों ने पहले ही 24 अप्रैल को जानकारी दी थी कि हमले की डिजिटल गतिविधियों को सीमा पार मुजफ्फराबाद और कराची स्थित सुरक्षित ठिकानों से संचालित किया गया था। अधिकारियों ने इसे 2008 के मुंबई हमलों की तरह “कंट्रोल रूम ऑपरेटेड हमला” बताया था।
भारत ने इस हमले के जवाब में 7 मई को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ चलाया था, जिसमें पाकिस्तान और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) में स्थित नौ आतंकी शिविरों पर तड़के बमबारी की गई थी। इन हमलों में कम से कम 100 आतंकियों के मारे जाने की पुष्टि हुई थी।
इसके बाद दोनों देशों के बीच चार दिन तक सीमा पर लड़ाई चली जिसमें लड़ाकू विमानों, मिसाइलों और तोपों का इस्तेमाल हुआ।