आज 4 मार्च है, और यह दिन भारतीय नौसेना के इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय के रूप में दर्ज है।
इसी दिन सन 1961 में भारत के पहले विमानवाहक पोत, INS विक्रांत, को औपचारिक रूप से नौसेना में शामिल किया गया था।
यह जहाज न केवल भारत की समुद्री शक्ति का प्रतीक बना, बल्कि इसने भारतीय सशस्त्र बलों की रणनीतिक क्षमताओं को हमेशा के लिए बदल दिया।
यहां हम 1961 के INS विक्रांत की बात कर रहे हैं। वैसे बता दें कि भारत ने बाद में एक और INS विक्रांत (2013) बनाया, जो स्वदेशी रूप से निर्मित पहला विमानवाहक पोत है।
लेकिन आज हम 1961 के INS विक्रांत और इसके गौरवशाली इतिहास को समझेंगे। आइए विस्तार से समझते हैं।
INS विक्रांत: एक साहसी योद्धा
INS विक्रांत का नाम संस्कृत शब्द “विक्रांत” से लिया गया है, जिसका अर्थ “साहसी” होता है। यह मूल रूप से ब्रिटिश रॉयल नेवी के लिए द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान HMS हरक्यूलिस के रूप में बनाया गया था।
युद्ध समाप्त होने के बाद इसकी निर्माण प्रक्रिया रुक गई थी, लेकिन 1957 में भारत ने इसे अधूरा खरीदा और 1961 में इसे पूरा करके नौसेना में शामिल किया।
4 मार्च 1961 को बेलफास्ट (आयरलैंड) में भारत की तत्कालीन उच्चायुक्त विजया लक्ष्मी पंडित द्वारा इसे विधिवत रूप से कमीशन किया गया।
इसकी कमान कैप्टन प्रीतम सिंह महेंद्रू के हाथों में थी। 05 मार्च, 1961 को विक्रांत समुद्री ट्रायल्स के लिए बेलफास्ट से पोर्ट्समाउथ और पोर्टलैंड के लिए रवाना हुआ और 06 अक्टूबर, 1961 को विक्रांत आखिरकार भारत के लिए रवाना हुआ। 03 नवंबर, 1961 को यह बॉम्बे पहुंचा।
यह भारत का पहला विमानवाहक पोत था और इसके साथ ही भारत उन चुनिंदा देशों में शामिल हो गया, जो समुद्र पर अपनी हवाई शक्ति को प्रोजेक्ट कर सकते थे।
INS विक्रांत का समुद्री प्रभुत्व और शक्ति प्रदर्शन
INS विक्रांत के आने से भारतीय नौसेना की सामरिक और रणनीतिक क्षमताओं में जबरदस्त बदलाव आया।
INS विक्रांत ने भारत को “ब्लू वॉटर नेवी” की क्षमता प्रदान की, जिसका मतलब है कि यह अपनी समुद्री सीमाओं से दूर तक अपनी शक्ति का प्रदर्शन कर सकता था।
इससे पहले भारत की नौसेना मुख्य रूप से तटीय रक्षा तक सीमित थी। विक्रांत के साथ, भारत ने समुद्र में अपनी मौजूदगी को मजबूत किया और दुश्मनों के लिए एक नया खतरा पैदा किया।
19,500 टन वजनी आईएनएस विक्रांत किसी एशियाई देश का पहला वाहक था और लंबे समय तक ऐसा ही रहा। अपने कमीशन के तुरंत बाद, आईएनएस विक्रांत ने 1961 में गोवा मुक्ति अभियान के दौरान जबरदस्त भूमिका निभाई।
1971 के युद्ध में निर्णायक भूमिका
INS विक्रांत का सबसे बड़ा योगदान 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में देखा गया। 1971 के युद्ध में इसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, इसके विमानों ने दुश्मन को धूल चटा दी थी।
इस युद्ध में विक्रांत को बंगाल की खाड़ी में तैनात किया गया था, जहां से इसके सी हॉक्स लड़ाकू विमानों और ब्रेगुएट एलिजेस टोही विमानों ने चटगांव, कॉक्स बाजार, खुलना और मोंगला में दुश्मन के ठिकानों पर हमला किया।
विमानों ने पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) के बंदरगाहों, व्यापारिक जहाजों और अन्य लक्ष्यों पर हमले किए।
इसने पाकिस्तानी सेना को समुद्री मार्गों से भागने से रोका और नौसैनिक नाकाबंदी को प्रभावी बनाया। इस सफलता ने नौसेना की महत्ता को स्थापित किया और भारत की सैन्य रणनीति में विमानवाहक पोतों की भूमिका को रेखांकित किया।
1984 में INS विक्रांत एक नए अवतार में वर्टिकल/शॉर्ट टेक ऑफ और लैंड (V/STOL) वाहक के रूप में उभरा, जिसमें बिल्कुल नया, अत्याधुनिक विमान सी हैरियर था।
इसकी नई क्षमता ने INS विक्रमादित्य को शामिल करने और इसके पुनर्जन्म की योजनाओं को प्रेरित किया। 36 वर्षों तक सेवा देने के बाद, इसे 31 जनवरी, 1997 को सक्रिय सेवा से हटा दिया गया।
हवाई शक्ति का समुद्री विस्तार व राष्ट्रीय गौरव और मनोबल
विमानवाहक पोत होने के नाते, INS विक्रांत ने नौसेना को हवाई हमले करने की क्षमता दी, बिना स्थानीय हवाई अड्डों पर निर्भर हुए। यह भारत को समुद्र के बीच में एक “तैरता हुआ हवाई अड्डा” प्रदान करता था, जिससे दुश्मन के जहाजों और तटीय ठिकानों पर सीधे हमले संभव हो सके।
INS विक्रांत केवल एक जहाज नहीं था, बल्कि यह भारत के बढ़ते आत्मविश्वास और तकनीकी प्रगति का प्रतीक था।
इसके आने से नौसेना और समग्र सशस्त्र बलों का मनोबल बढ़ा, और यह संदेश गया कि भारत अपनी रक्षा के लिए आत्मनिर्भर होने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।
INS विक्रांत की विशेषताएं और शक्तियां
INS विक्रांत एक मैजेस्टिक-क्लास विमानवाहक पोत था, जिसकी डिजाइन और विशेषताएं उस समय के लिए अत्याधुनिक थीं। जैसे-
आकार और वजन
यह जहाज 19,500 टन डिस्प्लेसमेंट वाला था, जिसकी लंबाई लगभग 210 मीटर (700 फीट) और चौड़ाई 39 मीटर (128 फीट) थी। यह अपने समय के सबसे बड़े जहाजों में से एक था।
विमान क्षमता
विक्रांत 21 से 23 विमानों को ले जाने में सक्षम था। इसमें हॉकर सी हॉक लड़ाकू जेट, सी किंग Mk 42B और HAL चेतक हेलीकॉप्टर, और ब्रेगुएट अलिजे पनडुब्बी-रोधी विमान शामिल थे। बाद के वर्षों में इसमें STOVL BAe सी हैरियर जेट भी शामिल किए गए। यह विविधता इसे बहुमुखी बनाती थी।
हथियार और रक्षा
शुरू में इसमें सोलह 40 मिलीमीटर बोफोर्स एंटी-एयरक्राफ्ट गन थीं, हालांकि बाद में इन्हें आठ तक कम कर दिया गया। ये हथियार हवाई हमलों से जहाज की रक्षा के लिए थे।
उड़ान डेक और तकनीक
इसका उड़ान डेक विमानों के उड़ान भरने और उतरने के लिए डिजाइन किया गया था, जिसमें 54 x 34 फीट के बड़े लिफ्ट शामिल थे। यह 24,000 पाउंड तक के विमानों को संभाल सकता था।
जहाज में LW-05 हवाई खोज रडार, ZW-06 सतह खोज रडार, और Type 963 विमान लैंडिंग रडार जैसे उन्नत संचार और नेविगेशन सिस्टम थे।
चालक दल और संचालन
इसमें लगभग 1,100 नौसैनिकों का चालक दल था। यह जहाज भाप टर्बाइनों से संचालित था, जो इसे 23 नॉट्स (लगभग 43 किमी/घंटा) की अधिकतम गति प्रदान करता था।
दीर्घकालिक प्रभाव
INS विक्रांत ने भारतीय नौसेना को एक नई दिशा दी। इसके बाद भारत ने INS विराट और INS विक्रमादित्य जैसे अन्य विमानवाहक पोतों को शामिल किया, और हाल ही में स्वदेशी INS विक्रांत (2013) को कमीशन किया।
1961 के विक्रांत ने यह साबित किया कि विमानवाहक पोत किसी भी आधुनिक नौसेना की रीढ़ होते हैं। इसने नौसैनिक रणनीति में हवाई शक्ति के महत्व को स्थापित किया और भारत को क्षेत्रीय शक्ति के रूप में उभरने में मदद की।
1997 में इसे सेवामुक्त कर दिया गया और बाद में इसे मुंबई में संग्रहालय जहाज के रूप में रखा गया। हालांकि, 2014 में इसे स्क्रैप कर दिया गया, लेकिन इसकी विरासत आज भी जीवित है।
इसके नाम पर बना नया INS विक्रांत (2013) उसी साहस और शक्ति का प्रतीक है। 4 मार्च 1961 को INS विक्रांत का कमीशन भारत के लिए एक ऐतिहासिक क्षण था।
इसने न केवल नौसेना की शक्ति को बढ़ाया, बल्कि भारत को वैश्विक मंच पर एक सशक्त समुद्री शक्ति के रूप में स्थापित किया।