उमर और शरजील पर देश तोड़ने की साजिश का आरोप, रहेंगे जेल में ही; तुषार मेहता ने जमानत का किया कड़ा विरोध…

2020 के दिल्ली दंगा मामले में आरोपी जेएनयू के पूर्व छात्र उमर खालिद, शरजील इमाम, गुलफिशा फातिमा और अन्य की जमानत याचिकाओं का कड़ा विरोध करते हुए दिल्ली पुलिस ने बुधवार को कहा कि यह देश को धार्मिक आधार पर बांटने की सुनियोजित साजिश थी।

दिल्ली पुलिस ने यह भी कहा कि इस तरह के राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में शामिल लोगों को जमानत नहीं मिलनी चाहिए। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता दिल्ली पुलिस की ओर से पेश हुए।

दिल्ली हाईकोर्ट की जस्टिस नवीन चावला और जस्टिस शालिंदर कौर की डिवीजन बेंच के समक्ष इस मामले पर सुनवाई हो रही है।

तुषार मेहता ने कोर्ट से कहा, “उमर खालिद और शरजील इमाम देश को धार्मिक आधार पर विभाजित करने की तैयारी कर रहे थे। यह कोई सामान्य दंगा नहीं था, बल्कि एक गहरी और सुनियोजित साजिश थी।” कोर्ट में तर्क रखते हुए मेहता ने कहा कि भले ही मुकदमा लंबा चल रहा हो, लेकिन देश की संप्रभुता पर हमला करने वाले मामलों में लंबी कैद कोई आधार नहीं हो सकती है। उन्होंने कहा, “आप अगर देश के खिलाफ कुछ कर रहे हैं, तो जेल में रहना ही उचित है।”

उन्होंने आरोप लगाया कि दंगों की योजना व्हाट्सऐप ग्रुप्स और आपसी संपर्क के जरिए बनाई गई थी, जिसमें सभी आरोपी एक-दूसरे के संपर्क में थे। इसमें उमर, शरजील, गुलफिशा फातिमा और अन्य का नाम सामने आया।

तुषार मेहता ने यह भी कहा कि यह साजिश केवल दंगा भड़काने तक सीमित नहीं थी, बल्कि इसका उद्देश्य भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बदनाम करना भी था। उन्होंने ब्रिटेन के अखबार ‘द गार्जियन’ की रिपोर्ट का जिक्र करते हुए कहा, “उन्होंने जानबूझकर एक विशेष दिन चुना ताकि वैश्विक मीडिया में भारत की छवि खराब हो सके।”

सॉलिसिटर जनरल ने कोर्ट को बताया, “यह किसी सामान्य दंगे जैसा मामला नहीं है, बल्कि यह देश की राजधानी से शुरू की गई एक राष्ट्रविरोधी मुहिम थी, जिसका प्रभाव पूरे देश में होना था।” उन्होंने शरजील इमाम द्वारा कथित रूप से दिए गए भाषण का हवाला देते हुए दावा किया, “इमाम ने 4 हफ्ते का टाइमलाइन दिया था इस साजिश को अंजाम देने के लिए।”

कोर्ट का फैसला सुरक्षित

हाईकोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद जमानत याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। गौरतलब है कि ये सभी आरोपी कई वर्षों से न्यायिक हिरासत में हैं, जबकि मुकदमे में अभी तक आरोप तय नहीं किए गए हैं। बचाव पक्ष का कहना है कि ट्रायल में देरी को देखते हुए जमानत दी जानी चाहिए।

आपको बता दें कि फरवरी 2020 में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के विरोध के दौरान दिल्ली में भड़के दंगों में 53 लोगों की मौत और 200 से अधिक घायल हुए थे। पुलिस ने दावा किया कि यह दंगे पूर्व नियोजित साजिश का हिस्सा थे।

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