मां लक्ष्मी और उनकी बड़ी बहन दरिद्रता को कहां मिला था रहने का वरदान? जानिए पौराणिक कथा…

प्रवीण नांगिया (ज्योतिष सलाहकार):

फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि के दिन समुद्र मंथन से देवी लक्ष्मी प्रकट हुई थीं।

लक्ष्मी जयंती मुख्य रूप से दक्षिण भारत में मनाई जाती है। इस त्योहार को मदन पूर्णिमा या वसंत पूर्णिमा के रूप में भी मनाया जाता है। वहीं एक अन्य मत के अनुसार देवी लक्ष्मी का जन्म आश्विन मास की शरद पूर्णिमा को माना गया है।

लक्ष्मी शब्द की उत्पत्ति संस्कृत शब्द लक्ष से हुई है, जिसका अर्थ है लक्ष्य। लक्ष्मी धन, समृद्धि और भाग्य की देवी हैं। वह भौतिक के साथ आध्यात्मिक उन्नति भी देती हैं।

विष्णु पुराण के अनुसार लक्ष्मी भृगु और ख्याति की पुत्री हैं। ऋषि दुर्वासा के श्राप के कारण उन्होंने स्वर्ग छोड़ दिया और क्षीरसागर को अपना घर बना लिया।

वह गुरु शुक्राचार्य के साथ-साथ चंद्रमा की बहन हैं। जब देव-दानवों ने मिल कर क्षीरसागर का मंथन किया तो समुद्र से चंद्रमा-लक्ष्मी प्रकट हुए और लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को पति रूप में वरण किया।

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार महर्षि भृगु की पत्नी ख्याति के गर्भ से एक सुंदर कन्या ने जन्म लिया। शुभ लक्षणों से युक्त होने के कारण उसका नाम लक्ष्मी रखा गया।

बड़ी होने पर लक्ष्मी को भगवान विष्णु के गुणों के बारे में पता चला। इससे उनकी विष्णु के प्रति अनुरक्ति हो गई। विष्णु को पति रूप में प्राप्त करने के लिए उन्होंने समुद्र के किनारे तपस्या आरंभ कर दी।

तपस्या करते-करते लंबा समय बीत गया। उनकी परीक्षा लेने के लिए इंद्र भगवान विष्णु का रूप धारण करके तपस्यारत देवी लक्ष्मी के पास आए और उनसे वर मांगने के लिए कहा। लक्ष्मी ने उनके विश्वरूप को देखने की इच्छा प्रकट की।

यह सुन कर इंद्र वहां से लज्जित होकर लौट गए। अंत में भगवान विष्णु स्वयं पधारे। उन्होंने लक्ष्मी से वर मांगने के लिए कहा। उनकी प्रार्थना पर भगवान ने उन्हें अपने विराटरूप के दर्शन कराए और लक्ष्मी की इच्छानुसार उन्हें पत्नी रूप में स्वीकार किया।

देवी लक्ष्मी की एक बड़ी बहन भी हैं, जिसका नाम दरिद्रा है। इस संबंध में एक पौराणिक कथा है कि इन दोनों बहनों के पास रहने का कोई निश्चित स्थान नहीं था। एक बार लक्ष्मी और उनकी बड़ी बहन दरिद्रा विष्णु के पास गईं और उनसे विनती की, कि उन्हें रहने के लिए उचित स्थान दें? भगवान विष्णु ने कहा कि आप दोनों पीपल के वृक्ष पर वास करो।

श्रीहरि विष्णु ने पीपल को वरदान दिया हुआ था कि जो व्यक्ति शनिवार को पीपल की पूजा करेगा, उसके घर का कभी ऐश्वर्य समाप्त नहीं होगा।

इस तरह वे दोनों बहनें पीपल के वृक्ष में रहने लगीं। जब श्रीहरि ने लक्ष्मी से विवाह करना चाहा तो देवी लक्ष्मी ने इनकार कर दिया। उन्होंने श्रीहरि से कहा कि वह अपनी बड़ी बहन दरिद्रा के विवाह के पश्चात ही उनसे विवाह कर सकती हैं।

उन्होंने दरिद्रा से पूछा कि वह कैसा वर चाहती हैं। दरिद्रा ने कहा कि वह ऐसा पति चाहती हैं, जो नास्तिक हो। ‘लिंगपुराण’ (2-6) के अनुसार दरिद्रा का विवाह दुसह नामक ब्राह्मण से हुआ।

भगवान विष्णु ने दोबारा देवी लक्ष्मी के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा तो लक्ष्मी ने कहा, जब तक उनकी बहन की गृहस्थी नहीं बस जाती, तब तक वह विवाह नहीं कर सकतीं। तब विष्णु ने पीपल के वृक्ष पर ही रविवार के दिन दरिद्रा और उनके पति को रहने के लिए स्थान दे दिया।

तब से हर रविवार पीपल के नीचे दरिद्रा का वास होता है, इसलिए इस दिन पीपल की पूजा नहीं की जाती। जबकि शनिवार के दिन पीपल की पूजा करने से सभी तरह के संकट दूर होकर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।

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