प्रवीण नांगिया (ज्योतिष सलाहकार):
महाकुंभ में गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम तट पर कल्पवास करने का नियम है।
महाकुंभ में भी देश के विभिन्न भागों से आए हजारों लोग यहां एक महीने कल्पवास में रहने का संकल्प करते हैं।
कल्पवास को इस तरह समझ सकते हैं कि कल्पवास का अर्थ है वो तप साधना जिससे आत्म शुद्धि मिलती है।
साधु संतों का जीवन तो रोज ही कल्पवास की तरह होता है, लेकिन यह ग्रहस्थों के लिए होता है कि वो किस तरह एक महीना यहां संयमित और अनुशासित जीवन की साधना करते हैं।आपको बता दें कि कल्प का अर्थ है युग और वास का अर्थ है रहना।
दूसरे तरीके से समझे तो किसी पवित्र भूमि में कठिन तप के साथ विरक्ति भाव से प्रेरित होकर निश्चित समय तक रहना कल्पवास माना जाता है।
कल्पवास के नियम
शास्त्रत्तें में कल्पवास के 21 नियम बताए गए हैं। जब तक आप इन नियमों को नहीं मानते तब तक कल्पवास पूरा नहीं माना जाता है।
कल्पवास के समय में बिल्कुल भी झूठ नहीं बोला जाता है। अपने घर- गृहस्थी की चिंता बिल्कुल छोड़ देनी चाहिए। इस दौरान गंगा में तीन बार गंगा स्नान करना होता है।
इस दौरान गंगा के किनारे शिविर में रहना होता है और शिविर में तुलसी का पौधा रोपनाृ होता है। कल्पवास के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। इस दौरान बाहर का खाना नहीं खा सकते हैं।
खुद या पत्नी के बनाए भोजन को ग्रहण करना होता है। उपदेश सत्संग में भाग लेना होता है। पूरे कल्पवास के दौरान आप पलंग पर नहीं सो सकते हैं, इस दौरान शिविर में जमीन पर सोना , स्वल्पाहार या फलाहार का सेवन करना होता है, सांसारिक चिंता से मुक्त होना होता है।
इंद्रियों पर संयम बरतना होता है। पितरों का पिंडदान करना होता है और अहिंसा, विलासिता का त्याग प्रमुख रूप से हैं।
क्या कल्पवास का लाभ
ऐसा कहा जाता है कि कल्पवास यानी एक महीने संगमतट में रहकर व्यक्ति जीवन-मृत्यू के बंधनों से मुक्त हो जाता है। इसे संगम तट पर माघ महीने में एक माह तक पुण्यफल बटोरने के तौर पर देखा जाता है।
ऐसा कहा जाता है कि कल्पवास के दौरान स्नान करने से वही फल है जो रोज करोड़ों गायों के दान का है। इसलिए पौष पूर्णिमा माघ महीने में स्नान और कल्पवास का संकल्प लिया जाता है।