मुंबई की एक अदालत में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के खिलाफ धार्मिक भावनाएं आहत करने के आरोप में एफआईआर दर्ज कराने की मांग की गई है।
अदालत ने याचिका को खारिज कर दिया है। मामले की सुनवाई करते हुए जज ने याचिकाकर्ता वकील से कहा कि किसी मुख्यमंत्री के खिलाफ ऐसी कार्रवाई तभी हो सकती है जब सरकार की पूर्व मंजूरी हो और जब मंजूरी ही नहीं है, तो मामला आगे कैसे बढ़ाया जा सकता है?
दरअसल, मुंबई के एक वकील ने पिछले साल अदालत में याचिका दाखिल की थी। याचिका में आरोप लगाया गया था कि ममता बनर्जी ने अपने बयानों से एक समुदाय की धार्मिक भावनाओं को बार-बार ठेस पहुंचाई, जिससे अराजकता और सांप्रदायिक तनाव पैदा हुआ। याचिकाकर्ता ने इन बयानों को “हेट स्पीच” बताया था।
आरजी कर अस्पताल की घटना का जिक्र
वकील ने पश्चिम बंगाल के आरजी कार मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में ड्यूटी पर तैनात डॉक्टर के बलात्कार और हत्या के बाद हुई हिंसा का जिक्र किया। उनका आरोप है कि इस घटना के बाद भीड़ ने अस्पताल में तोड़फोड़ की थी और इसी को लेकर ममता बनर्जी ने कथित बयान दिया था, जिसे याचिकाकर्ता ने आपत्तिजनक बताया।
गिरगांव कोर्ट के न्यायिक मजिस्ट्रेट एसआर निमसे ने पिछले महीने अपने आदेश में कहा कि भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धाराएं 196 (दो समूहों के बीच वैमनस्य फैलाना), 299 (धार्मिक भावनाएं आहत करना) और 302 (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने की नीयत से बयान देना) जैसी गंभीर धाराओं के तहत किसी भी मामले में कार्यवाही शुरू करने से पहले केंद्र या राज्य सरकार की पूर्व स्वीकृति जरूरी होती है।
चूंकि ममता बनर्जी के खिलाफ दायर इस याचिका में ऐसी कोई मंजूरी रिकॉर्ड पर नहीं थी, इसलिए अदालत एफआईआर दर्ज करने का आदेश नहीं दे सकती और याचिका खारिज कर दी गई।