रिकॉर्डतोड़ गर्मी और तेजी से बढ़ते तापमान के बीच वैज्ञानिकों ने एक और चिंताजनक भविष्यवाणी कर दी है।
यूरोप की प्रतिष्ठित कोपरनिकस क्लाइमेट चेंज सर्विस ने गुरुवार को बताया है कि अगर पृथ्वी का तापमान इसी गति से बढ़ता रहा तो यह सितंबर 2029 तक 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को आसानी से पार कर जाएगा।
यह अनुमान डराने वाले इसीलिए हैं क्योंकि इससे पहले वैज्ञानिकों ने इस सीमा तक पहुंचने के लिए 2030 के दशक की शुरुआत का लक्ष्य रखा था।
C3S के नाम से जानी जाने वाली इस संस्था ने बताया है कि पृथ्वी का तापमान पहले ही प्री इंडस्ट्रियल लेवल यानी औद्योगिक स्तर से 1.38 डिग्री सेल्सियस ऊपर पहुंच चुका है।
C3S ने गुरुवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, “हालांकि इसे पूर्वानुमान के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, लेकिन ग्लोबल वार्मिंग के ट्रेंड्स यही दर्शाते हैं।”
समूह ने बताया है कि वह 2000 के दशक से ग्लोबल वार्मिंग के ट्रेंड्स को फॉलो कर इस नतीजे पर पहुंची है।
पेरिस जलवायु समझौते से हटा अमेरिका
बता दें कि 2016 में हुए ऐतिहासिक पेरिस जलवायु समझौते के तहत वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री की सीमा के अंदर बनाए रखने की बात कही गई थी।
हालांकि तापमान की यह सीमा अब खतरे में दिखाई पड़ रही है। वहीं अमेरिका के नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस समझौते से बाहर होने के बाद चिंताएं और बढ़ गई हैं।
विशेषज्ञों के मुताबिक 1.5 डिग्री की सीमा का टूटना पृथ्वी के लिए एक निर्णायक मोड़ हो सकता है, जिसके बाद क्लाइमेट चेंज के परिणाम और अधिक गंभीर और व्यापक हो सकते हैं।
‘एक डिग्री का हर हिस्सा अहम’
C3S ने बताया कि ERA5 डेटासेट में पहली बार पृथ्वी का तापमान लगातार 12 महीनों तक 1850-1900 के औसत से 1.5 डिग्री सेल्सियस ऊपर या उससे अधिक रहा। ERA5 डेटा ग्लोबल सर्फेस टेंपरेचर पर अपडेट देता है।
यह 30 साल की प्रवृत्ति का विश्लेषण करके मौजूदा वार्मिंग स्तरों का अनुमान लगाता है। वहीं जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (IPCC) के अध्यक्ष जिम स्की ने कहा है कि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव भयानक हो सकता है।
स्की ने कहा, “2 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ने से कोरल रीफ़ पूरी तरह से गायब हो सकते हैं। जंगलों की आग बढ़ जाएगी और जैव विविधता को बड़ा नुकसान होगा। वास्तव में एक डिग्री का हर हिस्सा मायने रखता है।”
भारत के लिए बढ़ती चिंताएं
इस बीच भारत के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के पूर्व सचिव एम राजीवन ने निष्कर्षों को चिंताजनक लेकिन अप्रत्याशित नहीं बताया।
उन्होंने कहा, “यह एक बहुत ही दिलचस्प और महत्वपूर्ण प्लॉट है। हम उम्मीद से बहुत पहले 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा पार कर रहे हैं। मौसम की घटनाओं के संदर्भ में इसका गंभीर असर होगा। यह देखकर दुख होता है कि हम पिछले सबक से नहीं सीख रहे हैं।”
गौरतलब है कि भारत सहित दुनिया के अधिकांश हिस्सों में पिछले 18 महीनों में तापमान ने रिकॉर्ड तोड़े हैं। भारत में दिसंबर, जनवरी और फरवरी अब तक के सबसे गर्म महीने रहे हैं।