पूरी दुनिया को नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाला यूरोप अब खुद रूस से भारी मात्रा में एक खास सामान खरीद रहा है।
यह सामान है उर्वरक (फर्टिलाइजर), जो यूरोपीय कृषि के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।
रूस-यूक्रेन युद्ध के बावजूद, यूरोपीय संघ (ईयू) ने रूस से उर्वरक आयात में उल्लेखनीय वृद्धि की है, जिसके कारण कई सवाल उठ रहे हैं। यह वही यूरोप है, जिसने भारत द्वारा रूस से तेल खरीदने पर सवाल उठाए थे।
रूस से उर्वरक आयात में 33% की वृद्धि
पिछले कुछ वर्षों में, यूरोपीय संघ ने रूस से तेल और गैस आयात को कम करने के लिए कई कदम उठाए हैं। लेकिन उर्वरक के मामले में स्थिति एकदम उलट है।
डीडब्ल्यू की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, रूस से यूरोप के उर्वरक आयात का हिस्सा 2022 में 17% से बढ़कर अब लगभग 30% हो गया है।
साल 2024 में ही, उर्वरक आयात में 33% से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई, जिसका मूल्य करीब 2 अरब डॉलर (लगभग 1.75 अरब यूरो) है। यह उर्वरक मुख्य रूप से नाइट्रोजन-आधारित हैं, जिनका उत्पादन प्राकृतिक गैस पर निर्भर है। रूस, सस्ती गैस की उपलब्धता के कारण, इन उर्वरकों को यूरोपीय उत्पादकों की तुलना में कम कीमत पर बेच पाता है।
क्यों है रूस पर निर्भरता?
रूस दुनिया का एक प्रमुख उर्वरक उत्पादक और निर्यातक देश है। नाइट्रोजन-आधारित उर्वरक यूरोपीय कृषि के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
ये नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटैशियम जैसे पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं। मैकालेस्टर कॉलेज (यूएसए) के भूगोल विशेषज्ञ और संयुक्त राष्ट्र के खाद्य सुरक्षा और पोषण विशेषज्ञ पैनल के सदस्य प्रोफेसर विलियम मोसले के अनुसार, रूस सस्ती गैस का उपयोग करके इन उर्वरकों को कम लागत पर उत्पादित करता है, जिसके कारण वह यूरोपीय बाजार में प्रतिस्पर्धी बना हुआ है।
हालांकि, यह निर्भरता यूरोप के लिए जोखिम भरी साबित हो रही है। रूस ने हाल ही में उर्वरक निर्यात पर 10% का अस्थायी निर्यात शुल्क लगाया है, जिसका उद्देश्य युद्ध प्रयासों के लिए धन जुटाना बताया जा रहा है।
इसके अलावा, रूस ने 2023 में अतिरिक्त मुनाफे पर कर लगाकर लगभग 3.15 अरब यूरो जुटाए, जिनमें से 600 मिलियन यूरो उर्वरक आयात से आए। इससे यह सवाल उठता है कि क्या यूरोप अनजाने में रूस के युद्ध प्रयासों को फंड कर रहा है?
ईयू की रणनीति और चुनौतियां
यूरोपीय संघ अब इस निर्भरता को कम करने के लिए कदम उठा रहा है। हाल ही में यूरोपीय संसद ने रूस और बेलारूस से आयातित उर्वरकों पर 6.5% का शुल्क लगाने के प्रस्ताव को मंजूरी दी है, जिसे 2028 तक धीरे-धीरे 50% तक बढ़ाने की योजना है।
इस कदम का मकसद यूरोपीय उत्पादकों को प्रतिस्पर्धी बनाना और रूस पर निर्भरता कम करना है। हालांकि, यूरोपीय किसानों और कृषि संगठनों, जैसे कोपा और कोसेगा, का कहना है कि ईयू ने अभी तक रूसी उर्वरकों का कोई विश्वसनीय और किफायती विकल्प पेश नहीं किया है।
किसानों का कहना है कि उर्वरक खरीद उनकी परिवर्तनशील लागत का औसतन 10% हिस्सा है, और कुछ फसलों जैसे अनाज और तिलहन के लिए यह 30% तक जाता है। बढ़ते शुल्कों से उर्वरक की कीमतें बढ़ सकती हैं, जिससे किसानों की आय और यूरोप की खाद्य सुरक्षा पर असर पड़ सकता है। कोपा-कोसेगा ने ईयू से उर्वरक आपूर्ति के विविधीकरण के लिए एक स्पष्ट रणनीति पेश करने की मांग की है।
वैकल्पिक उपायों की तलाश
विशेषज्ञों का सुझाव है कि ईयू को अपने स्वयं के नाइट्रोजन-आधारित उर्वरक उत्पादन को बढ़ाने या जैविक उर्वरकों पर ध्यान देना चाहिए।
स्पेन और नीदरलैंड जैसे देशों ने गोबर-आधारित उर्वरकों के विकास पर काम शुरू किया है, और अन्य यूरोपीय देशों ने भी इस दिशा में सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है।
हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि पूरी तरह से अकार्बनिक उर्वरकों से स्वतंत्रता प्राप्त करना मुश्किल है, लेकिन धीरे-धीरे जैविक उर्वरकों की हिस्सेदारी बढ़ाई जा सकती है।
भारत पर दोहरे मापदंड का आरोप
ज्ञात हो कि यूरोप ने भारत द्वारा रूस से तेल खरीदने पर सवाल उठाए थे। भारत ने रूस से सस्ता तेल खरीदकर अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा किया, जिसे लेकर पश्चिमी देशों ने आलोचना की थी। लेकिन अब यूरोप की रूस से उर्वरक खरीद की बढ़ती निर्भरता ने उसके दोहरे मापदंडों को उजागर किया है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यूरोप अपनी खाद्य सुरक्षा और कृषि जरूरतों के लिए रूस पर निर्भर है, ठीक वैसे ही जैसे भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए रूस पर निर्भर था।
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने रूस से तेल खरीदने के भारत के फैसले का बचाव करते हुए यूरोप के दोहरे मापदंडों पर तीखा प्रहार किया था।
उन्होंने 2022 में स्लोवाकिया के GLOBSEC फोरम में कहा था कि जब यूरोपीय देश रूस से गैस और तेल का आयात जारी रखे हुए हैं, तब भारत से ही सवाल क्यों उठाए जा रहे हैं।
जयशंकर ने दोहा फोरम 2024 में भी स्पष्ट किया कि भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए सबसे अच्छा सौदा तलाश रहा है, क्योंकि तेल और गैस की कीमतें असंगत रूप से अधिक हैं, और भारत जैसे निम्न आय वाले देश के लिए यह नैतिक कर्तव्य है कि वह अपने नागरिकों के हित में रूस से सस्ता तेल खरीदे।