प्रियंका प्रसाद (ज्योतिष सलाहकार): केवल व्हाट्सएप मेसेज 94064 20131
आज धनतेरस है और इस खास दिन पर शनि प्रदोष व्रत भी पड़ रहा है। इस खास दिन पर विशेष रूप से भगवान शिव की पूजा होती है।
इस दौरान शुभ मुहूर्त के दौरान पूजा-अर्चना करना शुभ माना जाता है। बता दें कि ये व्रत काफी पवित्र और शक्तिशाली माना जाता है।
इसे हर त्रयोदशी तिथि पर किया जाता है। हर महीने में दो बार त्रयोदशी व्रत होता है। पहली वाली शुक्ल पक्ष और दूसरी वाली कृष्ण पक्ष में। जानें आखिर इस व्रत की पूजा विधि क्या है और इस दिन किन खास मंत्रों का उच्चारण करना शुभ होता है?
ऐसे रखें शनि प्रदोष व्रत
शनि प्रदोष व्रत की पूजा के लिए सुबह-सुबह स्नान करें। इस दिन नीले और काले रंग के कपड़े पहनना शुभ मानते हैं। भगवान शिव की विधि-विधान के साथ पूजा करें और उनका अभिषेक करते हुए अपनी मनोकामना मांगें।
इसके बाद पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीया जलाएं। शनिवार होने के नाते शनि देवता की भी पूजा करना शुभ होगा। धार्मिक मान्यता के हिसाब से इस दिन शनि चालीसा औऱ शनि स्तोत्र का पाठ करने से शनि दोष भी खत्म होता है।
जरूर करें इन चीजों का दान
शनि प्रदोष व्रत में दान करने का विशेष महत्व है। कहा जाता है कि इस दिन सच्चे मन से जरूरतमंदों को दान करने से भगवान शनिदेव हर इच्छा पूरी कर देते हैं।
इस खास दिन पर काले तिल, सरसों का तेल, काले रंग के कपड़े, काली उदड़ की दाल और लोहे से बनी चीजें दान करना शुभ माना जाता है। साथ ही आज के दिन चीटियों को आटा और गुड़ देना भी शुभ मानते हैं।
अपने सामर्थ्य के हिसाब से जरूरतमंदों को अन्न और धन का दान जरूर करना चाहिए। इससे शनि देव बेहद ही प्रसन्न होते हैं।
करें इन मंत्रों का उच्चारण
प्रदोष व्रत में शनि मंत्रों का उच्चारण करने से भी कई लाभ मिलते हैं। इन मंत्रों को मन ही मन याद किया जाए तो और भी अच्छा है। साथ ही इनके उच्चारण से कर्मों का उचित फल मिलता है।
मान्यता है कि इससे मन की शांति और धैर्य में वृद्धि भी होती है। अगर नियमित रूप से कोई इन मंत्रों के साथ ध्यान लगाता है तो दुर्घटनाओं और बाधाओं से रक्षा होती है। नीचे देखें शनि प्रदोष व्रत में पढ़ने जाने मंत्र…
1. ॐ प्रां प्रीं प्रों स: शनैश्चराय नमः।
2. ॐ शनैश्चराय विदमहे छायापुत्राय धीमहि।
3. ॐ शं शनैश्चराय नमः
4. ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनैश्चराय नमः
5. ॐ शन्नो देविर्भिष्ठयः आपो भवन्तु पीतये। सय्योंरभीस्रवन्तुनः।।