प्रवीण नांगिया (ज्योतिष सलाहकार):
आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी कहा जाता है। इससे आषाढ़ी एकादशी, पद्मा एकादशी और हरिशयनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।
इस बार देवशयनी एकादशी का व्रत 6 जुलाई रविवार को रहेगा। इसी दिन से चातुर्मास की भी शुरुआत हो जाती है।
यह चातुर्मास के चार महीने पूजा पाठ, ध्यान, अनुष्ठान के लिए शुभ माने जाते हैं। देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु क्षीर सागर में चार महीने के लिए योगनिद्रा में चले जाते हैं।
इसके बाद भगवान विष्णु योगनिद्रा से सीधा चार माह बाद प्रबोधिनी यानि देव उठनी एकादशी को जागते हैं।
इस दौरान भगवान के योगनिद्रा के समय सभी मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, सगाई, मुंडन संस्कार आदि शुभ कार्यों पर रोक रहेगी। इसके बाद यह दो नवंबर को देव उठनी एकादशी से ही यह आरंभ होंगे।
मुहूर्त- देवशयनी एकादशी की तिथि 5 जुलाई को शाम 6 बजकर 58 मिनट पर शुरू होकर छह जुलाई की शाम 9 बजकर 14 मिनट पर समाप्त होगी।
व्रत पारण टाइम- देवशयनी एकादशी का पारण 7 जुलाई की सुबह 5 बजकर 29 मिनट से लेकर 8 बजकर 16 मिनट तक रहेगा।
देवशयनी एकादशी महत्व
इस पावन दिन व्रत रखने से सभी तरह के पापों से मुक्ति मिल जाती है।
इस व्रत को करने से व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एकादशी का व्रत रखने से मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है।
देवशयनी एकादशी पूजा-विधि:
सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं।
घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
भगवान विष्णु का गंगा जल से अभिषेक करें।
भगवान विष्णु को पुष्प और तुलसी दल अर्पित करें।
अगर संभव हो तो इस दिन व्रत भी रखें।
भगवान की आरती करें।
भगवान को भोग लगाएं। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है। भगवान विष्णु के भोग में तुलसी को जरूर शामिल करें। ऐसा माना जाता है कि बिना तुलसी के भगवान विष्णु भोग ग्रहण नहीं करते हैं।
इस पावन दिन भगवान विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा भी करें।
इस दिन भगवान का अधिक से अधिक ध्यान करें।
एकादशी पूजा सामग्री लिस्ट
श्री विष्णु जी का चित्र अथवा मूर्ति
पुष्प
नारियल
सुपारी
फल
लौंग
धूप
दीप
घी
पंचामृत
अक्षत
तुलसी दल
चंदन
मिष्ठान