प्रवीण नांगिया (ज्योतिष सलाहकार):
आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी मनाई जाती है।
देवशयनी एकादशी से देव चार माह के लिए विश्राम में चले जाएंगे और (अबूझ तिथि को छोड़कर) सभी मांगलिक कार्यों पर चार माह के लिए रोक लग जाएगी।
देवशयनी एकादशी से भगवान विष्णु चार माह के लिए क्षीर सागर में शयन के लिए चले जाएंगे फिर कार्तिक माह शुक्ल पक्ष की एकादशी जिसे देव उठनी एकादशी भी कहा जाता है को जागृत होंगे।
देवशयनी एकादशी डेट- इस साल देवशयनी एकादशी 6 जुलाई को है।
मुहूर्त-
एकादशी तिथि प्रारम्भ – जुलाई 05, 2025 को 06:58 पी एम बजे
एकादशी तिथि समाप्त – जुलाई 06, 2025 को 09:14 पी एम बजे
पारण (व्रत तोड़ने का) समय – 05:29 ए एम से 08:16 ए एम
पारण तिथि के दिन द्वादशी समाप्त होने का समय – 11:10 पी एम
देवशयनी एकादशी पूजा-विधि:
सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं।
घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें।
भगवान विष्णु का गंगा जल से अभिषेक करें।
भगवान विष्णु को पुष्प और तुलसी दल अर्पित करें।
अगर संभव हो तो इस दिन व्रत भी रखें।
भगवान की आरती करें।
भगवान को भोग लगाएं। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है। भगवान विष्णु के भोग में तुलसी को जरूर शामिल करें। ऐसा माना जाता है कि बिना तुलसी के भगवान विष्णु भोग ग्रहण नहीं करते हैं।
भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं। विष्णु के शयनकाल के समय सृष्टि का भार देवों के देव महादेव पर होता है।
देवउठनी एकादशी से शुरू होंगे मांगलिक कार्य
भगवान विष्णु देवशयनी एकादशी से क्षीर सागर में सोने को चले जाते हैं। फिर चार मास बाद उन्हें जगाया जाता है।
पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक देवशयनी एकादशी के दिन श्रीहरि विष्णु भगवान क्षीर सागर में योग निद्रा के लिए चले जाते हैं। उनकी यह निद्रा चार माह बाद देवउठनी एकादशी के दिन खुलती है।
इन चार महीनों के दौरान भगवान शिव को संसार के संचालन की जिम्मेदारी सौंप दी जाती है। सारे मांगलिक कार्य इसलिए बंद हो जाते हैं।
लोगों का मानना है भगवान अभी निद्रा में हैं। ऐसे में किसी भी शुभ कार्य में भगवान का आशीर्वाद नहीं मिल पाएगा। जब देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु जागते हैं। उसी के साथ शुभ कार्य प्रारंभ हो जाते हैं।