महाराष्ट्र के स्कूलों में हिंदी को तीसरी भाषा बनाने का निर्णय अटका, जानें कहां आ रही है अड़चन…

महाराष्ट्र सरकार ने हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में लाने का फैसला फिलहाल रोक दिया है।

महाराष्ट्र में पहली से पांचवीं कक्षा के लिए हिंदी को तीसरी भाषा के तौर पर लागू किया जाना था। लेकिन सोमवार रात मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक के बाद इस पर रोक लग गई है।

मुख्यमंत्री कार्यालय के मुताबिक अंतिम फैसले से पहले साहित्यिक दिग्गजों, विषय विशेषज्ञों और नेताओं से विचार-विमर्श किया जाएगा। माना जा रहा है कि स्थानीय निकाय चुनावों के निकट आने के चलते प्रदेश सरकार ने यह फैसला रोका है।

हो रहा है तगड़ा विरोध
महाराष्ट्र में यह फैसला काफी अहम माना जा रहा है। कक्षा एक से पांचवीं तक में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में लागू करने को लेकर यहां काफी विरोध हो रहा है। 

राज ठाकरे की महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने इस फैसले का विरोध किया है। गौरतलब है कि आगामी स्थानीय चुनाव के लिए भाजपा और शिवसेना (शिंदे) मनसे को अपने साथ लाना चाहते हैं।

विपक्ष ने कहाकि यह कदम भाजपा का है। वह प्रदेश में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में थोपना चाहती है। सिर्फ राजनीतिक तबकों ही नहीं, बल्कि साहित्य से जुड़े लोग भी इस फैसले का विरोध कर रहे हैं।

साल 2021 में अपनी कविता के लिए राज्य पुरस्कार से सम्मानित कवि हेमंत दिवाते ने कहाकि अगर हिंदी लागू की गई तो वह अपना पुरस्कार लौटा देंगे।

दूसरी बार पीछे हटी सरकार
यह दूसरी बार है जब प्रदेश सरकार को तीसरे भाषा के रूप में हिंदी को लागू करने को लेकर पीछे हटना पड़ा है। इसी साल अप्रैल में एक सरकारी निर्णय जारी हुआ था।

इसमें कहा गया कि हिंदी तीसरी भाषा होगी और यह कक्षा 1 से 5 तक के छात्रों के लिए अनिवार्य होगी। हालांकि मनसे और अन्य लोगों के विरोध के बाद सरकार ने यह फैसला रोक दिया।

17 जून को राज्य ने एक संशोधित आदेश जारी हुआ।

इसमें सरकार ने तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य हिंदी शब्द को हटा दिया। इसके बदले छात्रों को किसी अन्य भाषा का विकल्प चुनने का अवसर दिया, बशर्ते कम से कम 20 छात्रों ने उसके लिए विकल्प चुना हो।

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