असम में कक्षा दस की परीक्षा में पूछे गए एक सवाल पर विवाद छिड़ गया है।
राज्य बोर्ड की परीक्षा में सामाजिक विज्ञान की परीक्षा में भारतीय धर्मनिरपेक्षता पर पूछे गए इस सवाल की कॉपी सोशल मीडिया पर वायरल होते ही लोगों ने हिमंत सरकार के खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी।
राज्य के कई एनजीओस ने इसे शिक्षा प्रणाली में कट्टरता का रंग घोलने की साजिश करार दे दिया। कई स्टूडेंट्स ऑर्गजनाइजेशन ने भी इस प्रश्न को लेकर राज्य सरकार का विरोध किया है।
इससे पहले परीक्षा में सवाल पूछा गया,” मान लीजिए की सरकार ने दम्बुक नामक एक गांव में एक हॉस्पिटल खोला है, जहां पर हिन्दुओं का इलाज फ्री में किया जाता है वहीं दूसरे धर्मों के लोगों को अपने इलाज का पैसा खुद देना पड़ता है।
क्या सरकार को भारत जैसे देश में ऐसा कुछ करना चाहिए? अपनी राय दीजिए।
इस प्रश्न के बारे में अपनी राय देते हुए गुवाहाटी हाईकोर्ट के सीनियर वकील हाफिज राशिद अहमद चौधरी ने कहा कि हमें आजकल के राजनीतिक हालातों को पता है लेकिन इसमें शिक्षा को शामिल करना कहीं से भी सही नहीं है।
उन्होंने कहा कि असम शिक्षा बोर्ड की एक विरासत है। नेताओं को उसे बख्श देना चाहिए.. उसे बर्बाद नहीं करना चाहिए। हम पहले से ही सोशल मीडिया पर धार्मिक और सामाजिक रूस के नकारात्मक विरोध का सामना कर रहे हैं। ऐसे सवालों से छात्रों के मन में सिवाय भेदभाव के और कुछ नहीं आएगा।
यह मानसिक शोषण है- छात्र नेत्री
दूसरी तरफ हेलाकांडी श्रीकृष्ण शारदा कॉलेज के छात्र संघ ने शुक्रवार को जिला कमिश्नर को इस प्रश्न के खिलाफ अपना ज्ञापन दिया और कहा कि अगर परीक्षा में फिर से ऐसे प्रश्न पूछे जाते हैं तो वह आंदोलन करना शुरू करेंगे।
छात्रसंघ की एक नेत्री सलमा खातून ने कहा कि आप हिंदुओं से इतर दूसरे धर्मों के बच्चों के बारे में सोचिए कि उनकी मानसिक स्थिति क्या होगी। यह एक तरीके का मानसिक शोषण है।
शिक्षा मंत्री ने किया बचाव
प्रश्न पत्र को लेकर उठे विवाद के बीच राज्य सरकार में शिक्षा मंत्री रनोज पेगू ने इसका बचाव किया है। उन्होंने कहा कि छोटी सी बात का इतना बड़ा मुद्दा बनाने की जरूरत नहीं है।
शिक्षा मंत्रालय यह समझने की कोशिश कर रहा था कि क्या छात्रों को भारतीय धर्मनिरपेक्षता की समझ है या नहीं। उन्होंने कहा कि संविधान की प्रस्तावना कहती है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है।
हमारे बच्चों को इस बात को गहराई से समझना होगा। यह टॉपिक कक्षाओं में पहले भी पढ़ाया जाता रहा है। मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर इतना विवाद क्यों बनाया जा रहा है।