सैयद जावेद हुसैन (सह संपादक – छत्तीसगढ़):
धमतरी- नगर निज़ाम की कारगुजारियां इन दिनों चर्चा में बनी हुई हैं, जहां मामूली कामों के लिए लाखों रुपए का फंड भी जुटा लिया जाता है काम भी हो जाता है, और वो काम भ्रष्टाचार की भेंट भी चढ़ जाता है।
शहर की सड़कों में निकलते ही ऐसे कई काम नजर आ जाएंगे, जिनके लिए नेता और नौकरशाह पूरी ईमानदारी से जुटे हुए नज़र आते हैं। मगर उस ईमानदारी का परिणाम उतना प्रभावी नहीं होता।
वहीं बहुत से ऐसे भी जरूरी काम हैं जिन्हें निगम निजाम को ज़्यादा तवज्जो देनी चाहिए लेकिन उसके लिए शायद उनके पास समय नहीं होता है।
सूत्र से जानकारी मिली है कि साल 2011- 12 से 2023-24 तक का निस्तारी पानी का शुल्क 3.56 लाख रुपए से ज्यादा निगम के ऊपर कर्ज़ है, जो साल दर साल बढ़ता चला जा रहा है।
जल संसाधन विभाग के विश्वसनीय सूत्र ने बताया कि निगम ने बीते 10 वर्षों से ज्यादा समय से निस्तारी पानी का शुल्क नहीं जमा किया है, जो बढ़ते बढ़ते 3.56 लाख से ज़्यादा हो चुका है जबकि विभाग द्वारा कई बार उन्हें नोटिस भेजा जा चुका है, जिसका जवाब देना भी निगम के नौकरशाह जरूरी नहीं समझते!
इस दौरान निगम की सत्ता भी बदली नौकरशाहों के भी तबादले होते रहे, लेकिन किसी ने इस गंभीर विषय पर अपनी तत्परता नहीं दिखाई।
ये करम आम जनता पे क्यों नहीं होता?
इस मामले को दूसरी तरह से देखें तो आम जनता के घरों में यदि जल कर बकाया होता है तो उनका कनेक्शन तक काट दिया जाता है, फ़िर वे दफ्तर के चक्कर काटते रहते हैं। जबकि निगम चलता ही है जनता के टैक्स के पैसों से! यदि नगर निगम के साथ जल संसाधन विभाग ऐसा करे तो फ़िर शहर की जनता का क्या होगा?
इस मामले में आयुक्त प्रिया गोयल ने कहा कि एक विभाग दूसरे विभाग का ऐसा लेनदेन सहता रहता है, शासन से फंड आयेगा तो शुल्क जमा कर दिया जाएगा।