Bihar Chunav 2025: अब परिणाम की उत्कंठा की ओर बढ़ चले बिहार के चुनाव ने जीत के लिए ऐसी व्यग्रता इससे पहले शायद की कभी दिखाई हो।
इस व्यग्रता ने प्रतिद्वंद्वात्मक तल्खी और तीखी बयानबाजी का कोई अवसर हाथ से जाने भी नहीं दिया। मुफ्त के वादों की तो ऐसी झड़ी लगी कि उसके लिए एक नहीं, बल्कि दर्जनों बिहार के खजाने भी कम पड़ जाएं!
व्यवस्था में बदलाव की प्रतिबद्धता जताते हुए महागठबंधन ने हर परिवार को एक सरकारी नौकरी देने का वादा किया।
युवाओं को आकर्षित करने का उसका यह दांव जोर पकड़ता कि उससे पहले ही एनडीए ने जंगलराज की मद्धिम पड़ चुकी स्मृतियों को चटख कर दिया। इस बार जुबानी जंग के बीच दावे और वादे घोषणा-पत्र से भी आगे बढ़ गए।
संकल्प पत्र बनाम तेजस्वी प्रण
एनडीए के ‘संकल्प पत्र’ और महागठबंधन के ‘तेजस्वी प्रण’ इन दावों में विलीन हो गए। वादों को गिनाते समय एनडीए का फोकस समग्र विकास, आधारभूत संरचना और कौशल विकास पर रहा।
महिलाओं के साथ किसानों के लिए नकदी लाभ के वादे हुए। महागठबंधन बेहिसाब नौकरियों और जन-कल्याण के वादों पर अडिग रहा।
महिलाओं के लिए एकमुश्त 30000 नकदी देने की घोषणा तेजस्वी यादव ने चुनाव के ठीक बीच में तब की, जब ओपिनियन पोल सार्वजनिक हो रहे थे। एनडीए ने उसे हताशा में किया जाने वाला वादा बताया।
छाया रहा जंगलराज का मुद्दा
वस्तुतः महागठबंधन ने रोजगार और पलायन के मुद्दे पर जब घेरने का प्रयास किया, तो एनडीए जंगलराज की दुहाई देने लगा।
उसके लिए कठघरे में खड़ा किए जाने वाले लालू प्रसाद भी अंततः कई दशक का झिझक तोड़ रोड-शो के लिए उस दानापुर में निकल ही गए, जहां से जेल में बंद बाहुबली रीतलाल यादव पर राजद ने दांव लगा रखा है।
लालू के बाहर निकले के साथ ही भाजपा की ओर से कट्टा और तमंचा वाले गुजरे दौर की यादें ताजा की जाने लगीं। एनडीए ने दावा किया कि नीतीश के 20 वर्ष के सुशासन में जंगलराज समाप्त हुआ और व्यवस्था के प्रति महिलाओं का भरोसा बढ़ा।
2020 में 10 लाख नौकरियां दी जा चुकी हैं। आगे एक करोड़ नौकरियां दी जाएंगी। इस हवाले से एनडीए के नेताओं ने महागठबंधन के वादे को हवा-हवाई बताया।
महागठबंधन ने सीएम नीतीश पर साधा निशाना
प्रत्युत्तर में महागठबंधन के नेताओं ने नीतीश की आयु-जनित थकान के साथ सत्ता के लिए पलटीमारी की आलोचना की। वादा यह कि सत्ता मिली तो 20 महीने में ऐसा बदलाव लाएंगे कि बिहार अद्भुत हो जाएगा।
इसके साथ ही एनडीए पर वादे पूरे नहीं करने और एसआइआर से वोट चोरी के आरोप भी लगे। इसने एनडीए को घुसपैठ के मुद्दे पर आक्रामक होने का अवसर दे दिया।
चुनाव के आखिरी दौर में राहुल गांधी ने अपने अंदाज में दिल्ली में जो हाईड्रोजन बम फोड़ा, वह हरियाणा में वोट चोरी के आरोप से संबंधित रहा।
उत्साही लोगों ने मौका-मुआयना कर बता दिया कि आरोप निराधार है। यानी कि हाईड्रोजन बम फूलझड़ी भी नहीं रही।
इस चुनाव में टूटी जातीय जकड़न
उसके बाद बिहार के पहले चरण में हुए रिकार्ड मतदान ने एसआइआर पर आशंकाओं के लिए गुंजाइश ही नहीं छोड़ी। बरहरहाल इस दुराग्रही राजनीति के बावजूद अबकी बार चुनाव में जातीय जकड़न को तोड़कर मतदान की वर्गीय व्यवस्था कुछ हद तक प्रभावी हुई है।
मतदाताओं के रूप में महिलाएं तो 2010 से ही एक वर्ग बन चुकी हैं, लेकिन इस बार युवाओं के साथ किसानों को भी इसी सांचे में ढालने का भरसक प्रयास हुआ।
यह प्रयास दोतरफा (एनडीए और महागठबंधन) रहा, जिसमें क्रियान्वयन के आधार पर एनडीए के वादे सहज रहे।
महागबंधन, विशेषकर तेजस्वी, द्वारा किए जाने वाले प्रत्यक्ष व नकदी लाभ के वादे बिहार की आर्थिक हैसियत से काफी बड़े हैं, जैसा कि आर्थिक-राजनीतिक विश्लेषक बता रहे।
प्रचार-प्रसार का विश्लेषण
महागठबंधन का प्रचार काफी आक्रामक और जन-केंद्रित रहा। तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाकर युवाओं, महिलाओं, गरीबों और ओबीसी-ईबीसी को लुभाने का प्रयास हुआ।
प्रचार का रंग ‘बदलाव की लहर’ और ‘नया बिहार’ का था, जिसमें बड़ी रैलियां, डोर-टू-डोर कैंपेन, इंटरनेट मीडिया (एआइ वीडियो, मीम्स) और स्टार प्रचारकों की ताबड़तोड़ सभाएं सम्मिलित रहीं।
महागठबंधन ने एनडीए पर जंगलराज का डर दिखाने का आरोप लगाते हुए स्वयं को विकास और न्याय का विकल्प बताया।
एनडीए का प्रचार अभियान काफी आक्रामक और जोरदार रहा। उसके नेताओं ने “फिर एक बार एनडीए सरकार” और “नहीं चाहिए कट्टा सरकार” जैसे नारे लगवाए। नरेन्द्र मोदी ने बेतिया में कहा कि “राजद वाले बच्चों को गलत दिशा में ले जा रहे हैं, हम लैपटाप-किताब दे रहे हैं।”
अमित शाह ने “जंगलराज बनाम सुशासन” का मुद्दा जोरदार तरीके से उठाया। कहा कि अगर लालू का बेटा जीता तो अपहरण विभाग खोलेगा। एनडीए ने “विकास, सुरक्षा, मोदी-नीतीश की जोड़ी” पर प्रचार को केंद्रित किया, जो ग्रामीण परिक्षेत्रों और महिलाओं में खूब चला।