वैश्विक उथल-पुथल के बीच क्या भारत और EU के रिश्ते हो रहे हैं मजबूत?…

पूरा का पूरा यूरोपीय आयोग अपनी मुखिया उर्सुला फॉन डेयर लाएन के साथ भारत दौरे पर जा रहा है।यात्रा का मकसद सुरक्षा और कारोबार में सहयोग बढ़ाना है।

इस यात्रा को यूरोप के लिए नए सहयोगी बनाने की कवायद कहा जा रहा है।

यूरोपीय आयोग की प्रमुख उर्सुला फॉन डेयर लाएन गुरुवार, 27 फरवरी को आयोग के सभी सदस्यों के साथ दिल्ली पहुंचेंगी।यूरोपीय संघ की कार्यकारी संस्था के सभी शीर्ष नेता उनके साथ होंगे।

भारत और यूरोपीय संघ पहले ही विदेश नीति, रक्षा और तकनीकी विकास के मामले में एक दूसरे के साथ करीबी सहयोग कर रहे हैं।

अब यूरोपीय संघ दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाले देश के साथ लंबे समय से लंबित मुक्त व्यापार समझौते को अंतिम रूप देने की कोशिशों में जुटा है।

भारतीय विदेश मंत्री का कहना है कि यह दौरा, “बढ़ते कंवर्जेंस के आधार पर द्वीपक्षीय संबंधों को मजबूत बनाने के लिए” रास्ता तैयार करेगा।

इस दौरे में होने वाले भारत-यूरोपीय संघ कारोबार और तकनीकी परिषद की बैठक से दोनों पक्ष डिजिटल इनोवेशन और टिकाऊ तकनीक के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने की उम्मीद कर रहे हैं।

यह एक द्विपक्षीय संगठन है जिसमें यूरोपीय संघ के चुनिंदा आयुक्त और भारत के केंद्रीय मंत्री शामिल हैं।

क्या अमेरिका के बिना चल सकता है यूरोप का काम “संबंधों में विविधता” लाने की कोशिश में यूरोपीय संघविदेश नीति के विशेषज्ञ राजनयिकों का कहना है कि यूरोपीय संघ फिलहाल अमेरिका जैसे पारंपरिक सहयोगियों पर निर्भरता घटाना चाहता है।

साथ ही चीन को लेकर उसकी चिंताएं बनी हुई हैं।पूर्व राजनयिक अजय बिसारिया ने डीडब्ल्यू से कहा, “यह दौरा कठिन समय में हो रहा है क्योंकि यूरोप को बिखरते अटलांटिक पार संबंधों और एक अशांत राष्ट्रपति के दौर से गुजरना पड़ रहा है।

यह सब तब हो रहा है जब चीन की हठधर्मिता और रूस की आक्रामकता को लेकर चिंताएं बनी हुई हैं”यूक्रेन पर बातचीत से बाहर यूरोप में बेचैनी बढ़ीबिसारिया ने यह भी कहा, “किफायती सुरक्षा, सामान और ऊर्जा मुहैया कराने वाले प्रमुख ताकतों के अशांत रवैये ने यूरोपीय संघ को अपने संबंधों में विविधता पैदा करने के लिए सक्रिय किया है, और भारत इसमें एक स्वाभावित सहयोगी के रूप में उभरा है”व्यापार समझौता अब भी लटका हैभारत और यूरोपीय संघ मुक्त व्यापार समझौते को जल्दी से हासिल करने की कोशिश कर रहे हैं।

इसके साथ ही स्वच्छ तकनीक और रणनीति सहयोग बढ़ाना चाहते हैं ताकि अमेरिका के संभावित शुल्कों का सामना कर सकें।

हालांकि व्यापार समझौता अब भी कई मुद्दों पर अटका हुआ है।

इनमें कार और अल्कोहल वाले पेय के लिए बाजार खोलने जैसे मुद्दे शामिल हैं। इसके साथ ही बौद्धिक संपदा संरक्षण को लेकर भी मतभेद हैं।

खासतौर से भारत का जोर इस बात पर है कि निवेशकों को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में जाने से पहले स्थानीय उपायों का सहारा लेना होगा।

इन मुद्दों पर अगले दौर की बातचीत मार्च में होनी है।चीन की बेल्ट एंड रोड परियोजना को भारत का जवाबजवाहल लाल नेहरू विश्वविद्यालय में यूरोपीयन स्टडीज के प्रोफेसर गुलशन सचदेवा का कहना है कि यूरोपीय संघ के साथ सहयोग बढ़ाना मुक्त व्यापार समझौते के आगे जाता है।

उन्होंने डीडब्ल्यू से कहा, “भले ही व्यापार समझौता अभी नहीं हो पा रहा है, मौजूदा वैश्विक भूराजनीतिक बिखराव ने दुनिया की दो बड़ी लोकतांत्रिक ईकाइयों को तकनीक और संपर्क जैसे क्षेत्रों में सहयोग करने का मौका दिया है”सचदेवा ने यह भी कहा कि भारत द्विपक्षीय रूप से भी बड़े यूरोपीय शक्तियों के साथ सहयोग बढ़ा रहा है, लेकिन वह ब्रशेल्स की नौकरशाही के साथ रिश्तों को आगे ले जाने का महत्व भी जानता है।

उन्होंने ध्यान दिलाया कि भारत प्रशांत में अपने कंवर्जेंस के बढ़ते हितों को भारत आधुनिक बनाने की इच्छा रखता है।

सचदेवा के मुताबिक व्यापार और तकनीक परिषद और महत्वाकांक्षी भारत-मध्यपूर्व-यूरोप आर्थिक गलियारे (आईएमईसी) जैसी पहल के जरिए दोनों पक्ष नए रास्ते तलाश रहे हैं।

ऐसी उम्मीद की जा रही है कि यह गलियारा यूरोप और एशिया के बीच परिवहन और संचार को मजबूत करेगा।इस गलियारे को अकसर चीन के बेल्ट एंड रोड परियोजना का जवाब कहा जाता है।

सचदेवा ने यह भी कहा, “इसके साथ ही यूरोपीय संघ के साथ भारत के संबंध का विस्तार उसके प्रमुख देशों पर पारंपरिक ध्यान से आगे जा कर नॉर्डिक, मध्य और पूर्वी यूरोप और भूमध्यसागरीय इलाके में संबंध और संपर्क बनाने पर है।

यूरोपीय संघ अब भी चीन का “जोखिम घटाना” चाहता हैमांत्रया इंस्टिट्यूट ऑफ स्ट्रैटजिक स्टडीज की प्रमुख शांथी डीसूजा का कहना है कि नई दिल्ली और ब्रसेल्स के बीच संबंध अभी पूरी तरह अनुकूल नहीं हुए हैं।डीडब्ल्यू से डीसूजा ने कहा, “यूरोपीय संघ यूक्रेन युद्ध पर भारत के रुख का आलोचक रहा है।

दूसरी तरफ भारत यूरोपीय संघ के कार्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट के तंत्र और जंगलों की कटाई के कानून को अनुचित मानता है”इन मतभेदों के बावजूद हालांकि भारत और यूरोपीय संघ दोनों ने सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन और टिकाऊ विकास के मुद्दों को छूते हुए रणनीतिक सहयोग बढ़ाया है।

अमेरिका से आ रही भूराजनीतिक उथल पुथल से भारत भी अछूता नहीं है।डीसूजा का कहना है, “भारत ट्रंप प्रशासन की शुल्क और आप्रवासियों के मामले में एकतरफा कार्रवाइयों पर अपने जवाब का आकलन कर रहा है”डीसूजा के मुताबिक, उर्सुला फॉन डेयर लाएन और यूरोपीय संघ के दूसरे शीर्ष अधिकारी तमाम मुद्दों पर एक गंभीर बातचीत का मौका लेकर आए हैं।

इनमें कारोबार, ग्रीन टेक्नोलॉजी, शिक्षा, स्वास्थ्य, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, रक्षा संबंधों का विस्तार, भारत प्रशांत और खास तौर से यूरोप के लिए का जोखिम घटाना शामिल है।

नया भूराजनीतिक गठबंधनभारत में 6,000 से ज्यादा यूरोपीय कंपनियां मौजूद हैं।सामान का व्यापार पिछले एक दशक में करीब 90 फीसदी बढ़ गया है।यूरोपीय आयोग के मुताबिक यूरोपीय संघ सब मिला कर अब भारत का सबसे बड़ा कारोबारी सहयोगी है।

उसने चीन और अमेरिका को पीछे छोड़ दिया है।2023 में यूरोपीय संघ से आयात और निर्यात करीब 130 अरब अमेरिकी डॉलर का था।यह भारत के कुल व्यापार का करीब 12।2 फीसदी है।

सिंगापुर इंस्टिट्यूट ऑफ साउथ एशियन स्टडीज के विजिटिंग प्रोफेसर सी राजा मोहन ने डीडब्ल्यू से कहा, “यह दौरा यूरोपीय संघ और भारत के संबंधों में एक ऐतिहासिक मील का पत्थर है और यह अहम है क्योंकि यह दुनिया में एक दूसरे के बढ़ते अधिकार को दिखाता और उसे काम में बदलने के लिए दबाव बनाता है, अब यह चाहे कारोबारी समझौते या तकनीकी सहयोग के जरिये हो या फिर एक मजबूत भूराजनीतिक गठबंधन से”इसी महीने की शुरुआत में भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने वैश्विक चुनौतियों पर पार पाने में भारत- यूरोपीय संघ के रणनीतिक संबंधों पर जोर दिया था।

जयशंकार ने कहा था, “एक ऐसी दुनिया जो बहुत अस्थिर और अनिश्चित दिखाई दे रही है, उसमें भारत और यूरोपीय संघ का संबंध स्थिरता लाने वाला एक अहम कारक हो सकता है”।

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