साथियों के शवों को खाकर बिताए दिन, अंत में जिंदा बचे; दिल दहला देने वाली प्लेन क्रैश की सच्ची कहानी…

अमेरिका में विमान और हेलीकॉप्टर की टक्कर से हुए हादसे में सभी लोगों के मारे जाने की खबर है।

अधिकारियों का कहना है कि अब बचाव अभियान लोगों के शव खोजने की तरफ मुड़ गया है। वाशिंगटन डीसी के करीब क्रैश हुए इस हादसे में शामिल मृत लोगों की खोज करना आसान है।

क्योंकि दायरा सीमित है, लेकिन 1972 में उरुग्वे एयर फोर्स के यात्रियों को खोजना आसान नहीं था। बर्फ की पहाड़ी पर क्रैश हुए इस विमान के सदस्यों को 72 दिन इंसानी मांस और मौत की प्रतीक्षा में बिताने पड़े।

सरकारों ने उनकी खोज तक बंद कर दी। लेकिन तब भी जीने की आत्मशक्ति से 16 लोग अपने घर लौट आए।

पूरी कहानी 13 अक्टूबर 1972 से शुरू हुई, जब उरुग्वे एयर फोर्स की फ्लाइट 571 खराब मौसम और पायलट के गलत अनुमान की वजह से एंडीज पर्वत की चोटियों से टकरा गया और वहीं पर क्रैश हो गया।

क्रैश की वजह से प्लेन दो हिस्सों में टूट गया। इसमें 12 लोगों की तत्काल मौत हो गई। प्लेन क्रैश की जानकारी मिलते ही, दोनों देशों की वायुसेनाओं ने खोजबीन शुरू कर दी लेकिन एंडीज पर्वतमाला पर यह आसान नहीं था।

सबसे बड़ी दिक्कत थी कि जहाज सफेद रंग का था और वहां बर्फीला तूफान लगातार आते जा रहे थे। कुछ दिनों तक खोज करने के बाद सरकारों ने भी खोज को कम कर दिया।

सरकार से मदद की उम्मीद कर रहे लोगों के शुरुआती दिन तो प्लेन में रखे खाने और वाइन की बोट्ल्स की वजह से सही से गुजरे।

लेकिन प्लेन के टूटने और कपड़ों के कम होने की वजह से उनकी हालत धीरे-धीरे खराब होने लगी। हाड़ गलाने वाली इस ठंड में धीरे-धीरे लोग मरने लगे।

भूख से बचने के लिए सीटों के कवर तक खा लिए

यह प्लेन यात्रा कुछ ही घंटों की थी। इसलिए इस पर इतना ज्यादा खाने का सामान नहीं था। भूख से बेहाल लोगों की हालात लगातार बिगड़ती जा रही थी।

वहां बर्फ थी लेकिन उसे पिया नहीं जा सकता था। खाने के लिए चॉकलेट्स बची थी ऐसे में लोगों ने भूख मारने के लिए सीटों के कवर, जूतों और कपड़ो को ही खाना शुरू कर दिया। लेकिन उनकी परेशानी खत्म नहीं हो रही थी।

इंसानी मांस खाने का ख्याल

हादसे के 10 दिनों के अंदर ही लोगों का खाना खत्म हो गया। कुछ दिन तक तो अपने आप को रोक कर काम चलाया लेकिन उसके बाद भूख के आगे घुटने टेकने ही थे।

फ्लाइट पर मौजूद एक शख्स रॉबर्ट कैनेसा ने अपने साथियों को सबसे पहले आइडिया दिया कि वह बाहर बर्फ में दबे अपने साथियों के मांस के सहारे जिंदा रह सकते हैं।

कैनेसा की यह बात सुनकर लोगों ने उन्हें खूब भला बुरा कहा। लेकिन भूख इंसान को बेबस कर ही देती है। लंबी बहस और विरोध के बाद आखिर सभी लोग इसे करने के लिए तैयार हो गए।

एक और यात्री एडुआर्डो ने बाद में अपने एक इंटरव्यू में कहा कि किसी के लिए भी यह आसान नहीं था। कि हम इंसानी मांस खाएं। यह बहुत ही अजीब था कि हम कुछ समय तक अपने साथ जिंदा बैठे लोगों के मांस को खाने की बात कर रहे थे। लेकिन हमारे पास कोई और विकल्प भी नहीं था। बाकी दिनों तक हमने उतना ही इंसानी मांस खाया, जिससे हम जिंदा बचे रहे।

रेस्क्यू नहीं आया तो खुद आगे बढ़ने की सोची

हफ्तों से सरकारी मदद का इंतजार कर रहे इन लोगों को अब वहां पर कई दिन हो चुके थे। इन्हें समझ में आ चुका था कि अब लोगों ने और सरकार ने यह मान लिया है कि प्लेन हादसे में कोई भी जिंदा नहीं बचा है।

ऐसे में इन लोगों ने खुद ही कुछ करने की सोची। इसके लिए नैंडो पर्राडो, रॉबर्ट कैनेसा ने प्लेन से कुछ दूर बस्ती या मदद की तलाश में जाने की सोची। लेकिन उनके लिए यह आसान नहीं था क्योंकि हफ्तों की भूख ने उनके शरीर को कमजोर बना दिया था।

इंसानी मांस के कुछ टुकड़े लेकर और अपनी पूरी हिम्मत जुटा कर यह दोनों आगे बढ़ गए। दस दिनों की लंबी यात्रा के बाद उन्हें एक नदी के दूसरी तरफ एक इंसान दिखाई दिया। इन्होंने उसे चिल्लाकर अपने बारे में बताना चाहा लेकिन इनकी भाषा की वजह से वह कुछ समझा नहीं।

बाद में वह कुछ मदद लेकर आया और इन दोनों को बचाया गया। कुछ ही देर में इनकी शिनाख्त के आधार पर 22 दिसंबर को रेस्क्यू हेलीकॉप्टर वहां पर पहुंचा और लोगों को बचाया।

इस पूरी कहानी को लेकर एक फिल्म सोयाइटी ऑफ द स्नो भी बनाई गई। कई लोगों ने इंसानी मांस को खाने को लेकर सवाल भी उठाए लेकिन जिंदा रहने की ललक ने इन लोगों का हौसला बनाए रखा।

शायद यह मानव विमान इतिहास के सबसे बड़े सर्वाइवल की दास्तां हैं।

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