विदेश मंत्रालय ने बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के प्रत्यर्पण के मामले में सोमवार को नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली बांग्लादेश की अंतरिम सरकार से एक आधिकारिक अनुरोध प्राप्त होने की पुष्टि की है।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने पुष्टि की कि भारतीय पक्ष को आज बांग्लादेश उच्चायोग से प्रत्यर्पण अनुरोध के संबंध में एक मौखिक नोट मिला है। उन्होंने कहा, “इस समय, हमारे पास इस मामले पर टिप्पणी करने के लिए कुछ नहीं है।”
अधिकारी ने कहा,”ऑन रिकॉर्ड और विदेश मंत्रालय के आधिकारिक प्रवक्ता के तौर पर हम पुष्टि करते हैं कि हमें प्रत्यर्पण अनुरोध के संबंध में आज बांग्लादेश उच्चायोग से एक वर्बल नोट प्राप्त हुआ है। इस समय, हमारे पास इस मामले पर टिप्पणी देने के लिए कोई सूचना नहीं है। बहरहाल, सवाल ये उठता है कि बांग्लादेश की इस मांग पर भारत क्या कर सकता है।
भारत के पास क्या विकल्प
इस मामले से वाकिफ लोगों ने नाम उजागर न करने की शर्त पर बताया कि नई दिल्ली किसी भी प्रत्यर्पण अनुरोध पर फैसला मामले के गुण-दोष के आधार पर कर सकता है।
उन्होंने बताया कि भारत और बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि से बंधे हुए हैं लेकिन 2013 में भारत और बांग्लादेश के बीच हुए प्रत्यर्पण संधि में ‘राजनीतिक अपराध अपवाद’ का एक प्रावधान शामिल है।
इसके तहत इस संधि के अनुच्छेद 6 में कहा गया है कि कोई भी पक्ष ऐसा प्रत्यर्पण अनुरोध अस्वीकार कर सकता है, जो राजनीतिक प्रकृति के अपराध से जुड़ा हो।
इसके अलावा इसी संधि के अनुच्छेद 8 में प्रत्यर्पण से इनकार करने के आधारों की एक सूची भी दी गई है, जिसमें कहा गया है कि किसी व्यक्ति को भारत उस स्थिति में भी प्रत्यर्पित नहीं कर सकता है जब उसे ये आभास हो कि प्रत्यर्पण किए जाने वाले के खिलाफ लगाए गए आरोप न्यायसंगत और सद्भावनापूर्वक नहीं लग रहे हों। स्पष्ट है कि भारत के पास इस संधि के जरिए शेख हसीना को वापस नहीं भेजने के पर्याप्त कारक हैं।
पूर्व राजदूत महेश सचदेव ने समाचार एजेंसी ANI से कहा, ” यह बात सही है कि बांग्लादेश के साथ हमारी प्रत्यर्पण संधि है लेकिन नोट वर्बल दो सरकारों के बीच संचार का सबसे निचला स्तर है।
अगर बांग्लादेश सरकार को इस मामले में गंभीरता दिखानी है तो उच्च-स्तरीय नोट भेजने होंगे। दूसरा, भारत और बांग्लादेश के बीच प्रत्यर्पण संधि में कई चेतावनियां हैं, जो राजनीतिक मुद्दों के मामले में प्रत्यर्पण को खारिज करती हैं। इसमें आपराधिक मुद्दों को राजनीतिक विचारों से बाहर रखा गया है।”
बांग्लादेश ने क्या कहा था
बता दें कि इससे पहले बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने सोमवार को कहा कि उसने अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना को ढाका वापस भेजने के लिए भारत को एक राजनयिक संदेश भेजा है।
77 वर्षीय हसीना 5 अगस्त से भारत में निर्वासन में रह रही हैं। वह छात्रों के नेतृत्व वाले विरोध प्रदर्शनों के बीच प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देकर देश छोड़कर भारत आ गई थीं। इसके साथ ही लगातार 16 साल से जारी उनके शासन का अंत हो गया था।
ढाका स्थित अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण ने ‘‘मानवता के खिलाफ अपराध और नरसंहार’’ के लिए हसीना और उनकी कैबिनेट में शामिल मंत्रियों, सलाहकारों और सैन्य एवं प्रशासनिक अधिकारियों के विरुद्ध गिरफ्तारी वारंट जारी किए हैं।
अंतरिम सरकार में विदेश मंत्री तौहीद हुसैन ने अपने कार्यालय में संवाददाताओं से कहा, ‘‘हमने भारत सरकार को एक राजनयिक संदेश भेजा है, जिसमें कहा गया है कि बांग्लादेश में न्यायिक प्रक्रिया के लिए उन्हें (हसीना) वापस ढाका भेजा जाए।’’
इससे पहले दिन में, गृह मंत्रालय के सलाहकार जहांगीर आलम ने कहा कि उनके कार्यालय ने भारत से अपदस्थ प्रधानमंत्री हसीना के प्रत्यर्पण के लिए विदेश मंत्रालय को एक पत्र भेजा है।
उन्होंने एक सवाल के जवाब में संवाददाताओं से कहा, ‘‘हमने उनके (हसीना) प्रत्यर्पण के संबंध में विदेश मंत्रालय को एक पत्र भेजा है।
प्रक्रिया अभी जारी है।’’ आलम ने कहा कि ढाका और नयी दिल्ली के बीच प्रत्यर्पण संधि पहले से ही मौजूद है और इस संधि के तहत हसीना को बांग्लादेश वापस लाया जा सकता है।
पिछले महीने बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के 100 दिन पूरे होने पर राष्ट्र के नाम संबोधन में मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस ने कहा था कि वह हसीना के प्रत्यर्पण की मांग करेंगे। उन्होंने कहा था, ‘‘हमें हत्या के हर मामले में न्याय सुनिश्चित करना चाहिए… हम भारत से कहेंगे कि वह शेख हसीना को वापस भेजे।’’
8 अगस्त को पदभार ग्रहण करने वाले यूनुस ने दावा किया है कि हसीना सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान छात्रों और आम लोगों सहित लगभग 1,500 लोग मारे गए, जबकि 19,931 अन्य घायल हुए। अक्टूबर में, विधि सलाहकार आसिफ नजरूल ने कथित तौर पर कहा था कि यदि भारत संधि के किसी प्रावधान का हवाला देकर हसीना के प्रत्यर्पण को अस्वीकार करने का प्रयास करेगा, तो बांग्लादेश इसका कड़ा विरोध करेगा।