भिलाई इस्पात संयंत्र की बहुप्रतीक्षित रावघाट परियोजना से लौह अयस्क निकलना शुरू हो गया है।
भिलाई इस्पात संयंत्र को इसका लंबे समय से इंतजार था, रावघाट परियोजना के तहत खदान के एफ ब्लॉक के अंजरेल क्षेत्र में दिसम्बर 2021 से भिलाई इस्पात संयंत्र ने लौह अयस्क उत्खनन का कार्य शुरू किया है।
खदान से निकलने वाले इस अयस्क को भिलाई तक लाने के लिए प्रबंधन ने अलग से रेलवे लाइन भी विकसित किया है। रेल लाइन का काम लगभग पूरा हो गया है।
इसके बाद अंजरेल से उत्खनन किए गए लौह अयस्क का प्रथम रैक का ट्रायल किया गया। इसके बाद रैक को अंतागढ़ से भिलाई इस्पात संयंत्र भेजा गया।
रविवार 11 सितंबर की सुबह भिलाई स्टील प्लांट पहुंचने पर निदेशक प्रभारी अनिर्बान दासगुप्ता व अन्य अधिकारियों ने रैक को हरी झंडी दिखाई।
अनिर्बान दासगुप्ता ने कहा कि यह गर्व की बात है कि, छत्तीसगढ़ की धरती से लौह अयस्क संयंत्र के ब्लास्ट फर्नेस, स्टील मेल्टिंग शॉप तक पहुंचता है।
यहां इस अयस्क से विश्व स्तरीय उत्पाद तैयार किया जाता है, रावघाट से लौह अयस्क का खनन शुरू करने के लिए बीएसपी काफी समय से प्रयासरत था। आज वह प्रयास सफल हुआ।
उन्होंने कहा कि सेल-बीएसपी राज्य सरकार के सहयोग से प्रगति करेगी और सभी तकनीकी मुद्दों से निपटेगी।
हर साल 3 लाख टन अयस्क का उत्खनन
बीएसपी के निदेशक प्रभारी दासगुप्ता ने बताया कि भिलाई इस्पात संयंत्र रावघाट क्षेत्र से हर साल 3 लाख टन लौह अयस्क का उत्खनन करेगा।
राज्य सरकार से इसकी अनुमति मिलने के बाद 10 सितम्बर 2022 को अंतागढ़ से 21 वैगन की प्रथम रैक को लोड की गई और भिलाई के लिए रवाना की गई।
200 किलोमीटर दूर है अंजरेल की खदान
रावघाट परियोजना के तहत जिस अंजरेल खदान से लौह अयस्क का उत्खनन किया जाता है वह भिलाई से 200 किलोमीटर दूर है।
खदान से लौह अयस्क को सड़क मार्ग से 50 किलोमीटर दूर अंतागढ़ रेलवे स्टेशन पहुंचाया जाता है। इसके बाद इसे रेल की बोगियों में भरा जाता है।
यहां से 150 किलोमीटर का सफर तय करके रैक भिलाई इस्पात संयंत्र तक पहुंचती है।
अयस्क में 62 प्रतिशत लोहे की मात्रा
बीएसपी के मुताबिक अंजरेल खदान से जो लौह अयस्क प्राप्त हो रहा है उसमें 62 प्रतिशत तक आयरन (FE) की मात्रा पाई गई है।
इससे संयंत्र की इस्पात उत्पादन क्षमता बढ़ेगी, साथ ही उसकी लागत में भी कमी आएगी। बीएसपी ने अंजरेल खदान में दिसम्बर 2021 में लौह अयस्क का उत्खनन शुरू किया था।