नाइटक्लब बाउंसर से प्रधानमंत्री बनने तक का सफर, जस्टिन ट्रूडो की गिनती चहेते नेताओं में होती थी…

जस्टिन ट्रूडो की गिनती ऐसे नेताओं में होती थी जो बेहद युवा, स्मार्ट और गुड लुकिंग थे।

उनकी मॉडर्न सोच और कामकाज का तरीका भी दुनियाभर के लोगों को प्रभावित करता था। हालांकि राजनीति में उन्हें यह दिन भी देखना पड़ेगा, शायद किसी ने अंदाजा ना लगाया होगा।

प्रधानमंत्री रहते हुए जस्टिन ट्रूडो की लोकप्रियता गायब होने लगी और उनके अपनों ने ही विरोध शुरू किया। अंत में उन्हें प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ गया। जिन कामों से उन्होंने अपनी पहचान बनाई थी, वही उनके लिए घातक साबित हो गए।

जस्टिन ट्रूडो ने कहा कि उन्हें अब अपनों से ही लड़ाई लड़नी पड़ रही है। जब तक अगले प्रधानमंत्री का चयन नहीं हो जाता तब तक वह प्रधानमंत्री का कामकाज देखते रहेंगे।

ट्रूडो ने कहा कि अगले चुनाव में वह सबसे अच्छा विकल्प नहीं बन सकते हैं। बता दें कि वित्त मंत्री क्रिस्टिया फ्रीलैंड के इस्तीफे के बाद ही उनकी पार्टी के नेताओं ने ही उनसे इस्तीफा मांगना शुरू कर दिया था। एक-एक कर उनके मंत्रियो ने भी इस्तीफा देना शुरू कर दिया। अंत में उन्हें भी पद छोड़ना पड़ गया।

नाइटक्लब में बाउंसर की नौकरी करते थे ट्रूडो

जस्टिन ट्रूडो का राजनीतिक सफर बेहद रोचक रहा है। उनके पिता पियरे ट्रूडो कनाडा के चार बार प्रधानमंत्री बने। वह देश के 15वें प्रधानमंत्री थे।

वहीं जस्टिन ट्रूडो 23वें प्रधानमंत्री बने। ट्रूडो 6 साल के ही थे तभी उनके माता-पिता का तलाक हो गया था। वह दो भाई थे। 11 साल की उम्र में ही वह पिता के साथ भारत आए थे। उस समय भारत की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी थीं।

जस्टिन ट्रूडो ने 1994 में अंग्रेजी लिटरेचर से ग्रैजुएशन किया। इसके बाद मैकगिल यूनिवर्सिटी से शिक्षण की ट्रेनिंग ली। फिर वह विसलर शहर में एक नाइटक्लब में बाउंसर की नौकरी करने लगे। बाद में वह फ्रेंच और गणित के अध्यापक बन गए।

45 साल की उम्र में वह जब कनाडा में आम चुनाव लड़ रहे थे तो विरोधी उनकी उम्र को लेकर उनका मजाक बनाते थे। हालांकि उन्होंने ना केवल 2015 में जीत हासिल की बल्कि अगले चुनाव में बहुमत ना हासिल होने पर भी उन्होंने सरकार बनाई।

अपने पिता की ही तरह जस्टिन ट्रूडो गुड लुकिंग हैं। वह कनाडा के दूसरे सबसे युवा प्रधानमंत्री थे। जस्टिन ट्रूडो की शादी एक टीवी एंकर सोफी से हुई थी। दोनों के तीन बच्चे भी हैं। हालांकि सोफी और ट्रूडो का तलाक हो चुका है। 2018 में जब दोनों एक साथ भारत आए थे तब उनके परिवार की काफी चर्चा हुई थी।

जस्टिन ट्रडो को प्रगतिवादी सोच के लिए जाना जाता है। उनका कहना था कि औद्योगिक विकास के साथ पर्यावरण का भी ध्यान रखना जरूरी है।

इसके अलावा उन्होंने इमिग्रेशन रिफॉर्म का बीड़ा उठाया। कहा जाता है कि उनकी इन्हीं नीतियों की वजह से ही लोकप्रियता कम भी होने लगी।

जहां एक तरफ बहुत सारे देश इमिग्रेशन को कठिन बना रहे थे वहीं जस्टिन ट्रूडो ने विविधता और जेंडर इक्वलिटी की वकालत करते थे।

उन्होंने अपनी कैबिनेट में महिला और पुरुषों को बराबर स्थान दिया। उन्होंने गांजा का भी वैध घोषित करवा दिया था। उन्होंने उद्योगों पर कार्बन टैक्स लगाया था। हालांकि बिगड़ती अर्थव्यवस्था और महंगाई की वजह से जनता अब उन्हें पसंद नहीं करती थी।

यह भी कहा जाता है कि भारत से पंगा लेने के बाद जस्टिन ट्रूडो के बुरे दिन शुरू हो गए। खुले तौर पर वह खालिस्तान समर्थकों का पक्ष लेने लगे थे।

इसके बाद खालिस्तानी हिंदुओं और मंदिरों पर हमले करने लगे। इससे ट्रूडो की छवि को नुकसान हुआ।

वहीं भारत ने बिना सबूत के आरोप लगाने पर बार-बार जस्टिन ट्रूडो को लताड़ा। इसके बाद भी वह कोई पुख्ता सबूत उपलब्ध नहीं करवा पाए। इससे उनकी काफी फजीहत हुई।

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