छत्तीसगढ़ में सभी जिलों में खुलेंगे सिकलसेल जांच केंद्र;स्वास्थ्य मंत्री ने अफसरों को दी 2 अक्टूबर तक की डेटलाइन, नई भर्ती भी होगी…

छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री टी.एस. सिंहदेव ने छत्तीसगढ़ के सभी जिलों और शासकीय मेडिकल कॉलेजों में सिकलसेल जांच एवं परामर्श केंद्र शुरू करने के निर्देश दिए हैं।

स्वास्थ्य विभाग के अफसरों को इसके लिए 2 अक्टूबर 2022 तक की डेटलाइन दी गई है।

स्वास्थ्य मंत्री ने सोमवार को रायपुर के पं. जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज में छत्तीसगढ़ सिकलसेल संस्थान संचालक मंडल की बैठक में ये निर्देश दिए।

स्वास्थ्य मंत्री ने इन जांच और परामर्श केंद्रों में काम करने वाले स्टॉफ को आवश्यक प्रशिक्षण भी देने को कहा है। स्वास्थ्य मंत्री ने वॉक-इन-इंटरव्यु के माध्यम से इसके लिए डॉक्टरों की भर्ती करने के भी निर्देश दिए।

बैठक में सिकलसेल संस्थान में जनरल ड्यूटी मेडिकल ऑफिसर (GDMO) के तीन पदों, क्लर्क-कम-कम्प्यूटर ऑपरेटर के पांच पदों और रेजीडेंट डॉक्टर के पांच पदों पर भर्ती की अनुमति भी प्रदान की गई।

स्वास्थ्य मंत्री ने संचालक मंडल की बैठक हर छह माह में आयोजित करने के निर्देश दिए। सिंहदेव ने कहा, पहुंचविहीन आदिवासी जिलों में सिकलसेल के मरीजों की प्राथमिकता से स्क्रीनिंग की जाए।

उन्होंने पीड़ितों के परिवार के सभी लोगों की स्क्रीनिंग करने को भी कहा है। इस बैठक में स्वास्थ्य विभाग के सचिव प्रसन्ना आर., आयुक्त डॉ. सी.आर. प्रसन्ना, आयुष विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. ए.के. चन्द्राकर, स्वास्थ्य सेवाओं के संचालक भीम सिंह, आयुष के संचालक पी. दयानंद, रायपुर मेडिकल कॉलेज की डीन डॉ. तृप्ति नागरिया, राज्य सिकलसेल संस्थान की महानिदेशक डॉ. उषा जोशी आदि शामिल थे।

क्या है यह सिकलसेल रोग

सिकलसेल एक अनुवांशिक बीमारी है। सामान्य रूप में हमारे शरीर में लाल रक्त कण प्लेट की तरह चपटे और गोल होते हैं।

यह रक्त वाहिकाओं में आसानी से आवाजाही कर पाते हैं लेकिन यदि जीन असामान्य हैं तो इसके कारण लाल रक्त कण प्लेट की तरह गोल न होकर हंसियाकार रूप में दिखाई देते हैं।

इस वजह से यह रक्त वाहिकाओं में ठीक तरह से आवागमन नहीं कर पाते हैं। जिससे शरीर में ऑक्सीजन की कमी होने लगती है। इसके कारण मरीज को एनीमिया की समस्या होती है। इसमें तेज दर्द होता है और बार-बार खून चढ़ाने की जरूरत होती है।

10% आबादी सिकलसेल की चपेट में

बताया जा रहा है कि छत्तीसगढ़ की 10% आबादी या तो इस बीमारी से पीड़ित है अथवा वह वाहक है। कुछ समुदायों में यह 30% तक है।

यानी बीमारी के अगली पीढ़ी में ट्रांसफर होने का खतरा बढ़ता जा रहा है। पिछले तीन सालों से मरीजों की पहचान के लिए विशेष तौर पर स्क्रीनिंग की जा रही है। बड़ी संख्या में बच्चों में इस रोग की पहचान की गई है।

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