गीता जयंती 2024: गीता के इन उपदेशों को हमेशा रखें याद, रोज पढ़ें ये महत्वपूर्ण श्लोक…

प्रियंका प्रसाद (ज्योतिष सलाहकार):

मोक्षदा एकादशी 11 दिसंबर बुधवार को मनाई जाएगी। ज्योतिष के अनुसार एकादशी तिथि की शुरुआत बुधवार को सुबह 3:45 से प्रारंभ होकर पूरे दिन व्याप्त रहने के बाद मध्य रात्रि तक विद्यमान रहेगी।

ऐसे में उदयातिथि की प्रधानता अनुसार 11 दिसंबर को ही मोक्षदा एकादशी का पावन व्रत रखा जाएगा। धर्म शास्त्रों के अनुसार इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था।

जिस कारण इसी दिन गीता जयंती भी मनाते हैं। इस वर्ष 5161वीं गीता जंयती मनायी जाएगी। इस दिन गीता पढ़ना और सुनना अत्यंत शुभ माना जाता है।

गीता के उपदेश हमें जीवन जीने की कला , निष्काम भाव से कर्म करना व धर्म के मार्ग में चलना सिखाते हैं। इसीलिए गीता को सबसे पवित्र ग्रंथ माना गया है।

गीता अज्ञान, दुख, मोह, क्रोध, काम और लोभ जैसी कुरितियों से मुक्ति का मार्ग बताती है। श्रीमद्भगवद्गीता का अनुसरण करने वाले व्यक्ति को मृत्यु के पश्चात मोक्ष की प्राप्ति होती है।

आज हम आपको गीता के कुछ चुनिंदा श्लोक बता रहे हैं, जिन्हें आपको रोजाना पढ़ना चाहिए।

नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक: ।

न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत ॥

अर्थ है: आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं, न आग उसे जला सकती है। न पानी उसे भिगो सकता है, न हवा उसे सुखा सकती है। अर्थात भगवान कृष्णइश श्लोक में आत्मा को अजर-अमर और शाश्वत कह रहे हैं।

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:।

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥

अर्थ है: हे भारत (अर्जुन), जब-जब अधर्म में वृद्धि होती है, तब-तब मैं (श्रीकृष्ण) धर्म के अभ्युत्थान के लिए अवतार लेता हूं।

परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्।

धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे॥

अर्थ है: सज्जन पुरुषों के कल्याण के लिए और दुष्कर्मियों के विनाश के लिए और धर्म की स्थापना के लिए मैं (श्रीकृष्ण) युगों-युगों से प्रत्येक युग में जन्म लेता आया हूं।

नैनं छिद्रन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक: ।

न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुत ॥

अर्थ है: आत्मा को न शस्त्र काट सकते हैं, न आग उसे जला सकती है। न पानी उसे भिगो सकता है, न हवा उसे सुखा सकती है। अर्थात भगवान कृष्णइश श्लोक में आत्मा को अजर-अमर और शाश्वत कह रहे हैं।

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:।

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥

अर्थ है: हे भारत (अर्जुन), जब-जब अधर्म में वृद्धि होती है, तब-तब मैं (श्रीकृष्ण) धर्म के अभ्युत्थान के लिए अवतार लेता हूं।

परित्राणाय साधूनाम् विनाशाय च दुष्कृताम्।

धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे-युगे॥

अर्थ है: सज्जन पुरुषों के कल्याण के लिए और दुष्कर्मियों के विनाश के लिए और धर्म की स्थापना के लिए मैं (श्रीकृष्ण) युगों-युगों से प्रत्येक युग में जन्म लेता आया हूं।

 प्रियंका प्रसाद (केवल व्हाट्सएप) 94064 20131

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