एक उच्च-स्तरीय संसदीय समिति ने गैर-निवासी भारतीयों (NRIs) को मतदान का अधिकार देने के प्रस्ताव का समर्थन किया है।
समिति ने इसके लिए प्रॉक्सी वोटिंग और इलेक्ट्रॉनिक बैलट (ई-बैलट) जैसे विकल्पों की सिफारिश की है, ताकि विदेश में रहने वाले भारतीय नागरिक भी लोकतांत्रिक प्रक्रिया में हिस्सा ले सकें।
समिति ने यह भी उल्लेख किया कि यह मामला वर्तमान में कानून मंत्रालय के पास लंबित है।
कांग्रेस नेता शशि थरूर की अध्यक्षता वाली विदेश मामलों की संसदीय समिति ने गुरुवार को प्रवासी भारतीयों पर अपनी रिपोर्ट संसद में पेश करने की योजना बनाई है।
इस रिपोर्ट में “एनआरआई” की परिभाषा को स्पष्ट करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया गया है, क्योंकि विभिन्न कानूनों में इस शब्द का अलग-अलग उपयोग किया जाता है।
एनआरआई मताधिकार को लेकर समिति की सिफारिशें
रिपोर्ट में समिति ने कहा कि मौजूदा नियमों के तहत एनआरआई को मतदान सूची में नाम दर्ज कराने के बावजूद भारत में शारीरिक रूप से मौजूद रहकर ही मतदान करना पड़ता है।
समिति ने चिंता व्यक्त की कि बड़ी संख्या में एनआरआई भारतीय नागरिकता छोड़ चुके हैं या दोहरी नागरिकता रखते हैं, जिससे चुनावी प्रक्रिया में उनकी भागीदारी सीमित हो गई है।
हालांकि, एनआरआई मतदान अधिकार का मुद्दा अभी कानून मंत्रालय की समीक्षा में है, लेकिन समिति ने विदेश मंत्रालय से आग्रह किया है कि वह इस मामले को कानून मंत्रालय और चुनाव आयोग के साथ सक्रिय रूप से आगे बढ़ाए।
समिति ने प्रॉक्सी वोटिंग और इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रेषित पोस्टल बैलेट सिस्टम (ETPBS) जैसी संभावित समाधानों का सुझाव दिया है।
लेकिन इसके लिए 1950 के जनप्रतिनिधित्व अधिनियम में संशोधन की आवश्यकता होगी और राजनीतिक दलों से व्यापक विचार-विमर्श जरूरी होगा।
एनआरआई मतदान का वर्तमान परिदृश्य
गौरतलब है कि वर्ष 2010 में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 20ए में संशोधन कर एनआरआई को सीमित मतदान अधिकार दिए गए थे।
2024 के लोकसभा चुनावों से पहले लगभग 1.2 लाख एनआरआई मतदाता पंजीकृत थे, लेकिन 2019 के आम चुनावों में केवल 2,958 प्रवासी भारतीयों ने भारत आकर मतदान किया था।
अब समिति की सिफारिशों के बाद देखना होगा कि सरकार इस प्रस्ताव पर क्या निर्णय लेती है और एनआरआई को मतदान का अधिकार देने की दिशा में कोई ठोस कदम उठाया जाता है या नहीं।