मृत्यु की तारीख न याद होने पर अमावस्या को करें श्राद्ध, पितरों के मोक्ष के लिए करें ये काम…

प्रियंका प्रसाद (ज्योतिष सलाहकार):

हिंदू पंचांग अनुसार आश्विन माह के कृष्ण पक्ष को पितृपक्ष कहा जाता है।

पितृपक्ष भाद्रपद मास की पूर्णिमा से शुरु होकर आश्विन मास की अमावस्या तक चलते हैं। भाद्रपद पूर्णिमा के दिन सिर्फ उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है जिनका निधन पूर्णिमा तिथि के दिन ही हुआ हो।

शास्त्रों अनुसार जिस व्यक्ति की मृत्यु किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष की या कृष्ण पक्ष की जिस तिथि को होती है उसका श्राद्ध कर्म पितृपक्ष की उसी तिथि को ही किया जाता है।

श्राद्ध का मतलब अपने सभी कुल देवताओं और पितरों के प्रति श्रद्धा प्रकट करना है। वैसे तो प्रत्येक महीने की अमावस्या तिथि को पितरों की शांति के लिए पिंड दान या फिर श्राद्ध कर्म किये जाते हैं।

लेकिन पितृ पक्ष में श्राद्ध करने का विशेष महत्व माना जाता है। मान्यता है इस दौरान पिंडदान, तर्पण, कर्म और ब्राह्मण को भोजन कराने से पूर्वज प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं।

श्राद्ध की तिथि जब न याद हो : शास्त्रों में यह भी विधान दिया गया है कि यदि किसी व्यक्ति को आपने पूर्वजों के देहांत की तिथि ज्ञात नहीं है तो ऐसे में इन पूर्वजों का श्राद्ध कर्म अश्विन अमावस्या को किया जा सकता है।

इस के अलावा दुर्घटना का शिकार हुए परिजनों का श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को किया जा सकता है।

सर्वपितृ अमावस्या पर करें ये काम-

गाय को हरा चारा खिलाएं

श्राद्ध के आखिरी दिन उन पितरों के लिए कर्मकांड किये जाते हैं, जिनकी मृत्यु की तिथि परिजनों को मालूम नहीं होती है। इस दिन पितरों के आत्मा की शांति के लिए गोधूलि बेला में गाय को हारा चारा खिलाना भी फायदेमंद साबित हो सकता है।

संध्या के समय दीप जलाएं

पितृपक्ष के आखिरी दिन पिंडदान और तर्पण की क्रिया के बाद गरीब ब्राह्मणों को अपनी यथाशक्ति अनुसार दान देने से भी पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

संध्या के समय दो, पांच या 16 दीप भी जलाने चाहिए।

(इस आलेख में दी गई जानकारियों पर हम यह दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं। विस्तृत और अधिक जानकारी के लिए संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।)

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