प्रियंका प्रसाद (ज्योतिष सलाहकार):
पर्युषण पर्व इन अर्थों में अनूठा पर्व है कि इस पर्व में घरों की, वस्त्रों की सजावट न करके आत्म गुणों की सजावट की जाती है।
स्वादिष्ट भोजन की बजाय उपवास से जीवन की खुराक दी जाती है। पर्युषण का शाब्दिक अर्थ है— आत्म गुणों की पर्युपासना करना अर्थात आत्म तत्त्व के निकट रहना।
श्वेतांबर परंपरा में निरंतर आठ दिन तक तथा दिगंबर परंपरा में दस दिन तक गहन साधना की जाती है।
भारतीय संस्कृति में अष्टान्हिका महोत्सवों का प्रचलन रहा था। वही अष्टान्हिका महोत्सव जब अध्यात्म संपदा से विभूषित हो गए तो इन्हें पर्युषण कहा जाने लगा।
इन आठ दिनों में आठ कर्मों की आंतरिक जकड़न को कम किया जाता है। आत्मा की आठ मौलिक शक्तियों का आविर्भाव करने का प्रयास किया जाता है। पर्युषण पर्व की आराधना में इन आठ संकल्पों का विशेष महत्व है—
खामेमि सव्वे जीवा मैं समग्र जीव राशि से अपनी ओर से क्षमा दान करता हूं। मेरे मन में किसी के प्रति रोष, असंतोष, क्षोभ नहीं है।
सव्वे जीवा खमंतु मे मैं सब जीवों से क्षमा याचना करता हूं। ज्ञात-अज्ञात स्थिति में मैंने किसी को आहत किया हो तो मैं स्वयं को अपराधी मानकर सबसे क्षमा मांग रहा हूं।
मित्ती मे सव्व भूएसु सृष्टि के सब जीवों के प्रति मैं मैत्री स्थापना की घोषणा करता हूं। मैत्री के अतिरिक्त कोई भिन्न भाव मेरे चित्त में नहीं है।
वेरं मज्झं न केणइ मेरा आभ्यंतर उल्लास पुकार रहा है कि किसी भी मानव या प्राणी के प्रति इस हृदय में शत्रुता, दुश्मनी, वैर-भाव शेष नहीं रहा है।
तवो जोई जीवो जोईट्ठाणं जिंदगी हवन कुंड है। इसमें तप की ज्योति जगाने को कृतप्रतिज्ञ हूं। मैं आहार जैसी आवश्यकता को भी पीछे करके मनोविजय की विधि ढूंढ़ रहा हूं एवं आत्मानुभूति के आनंद में निमग्न हूं।
अनुग्रहार्थं स्वस्याति सर्गो दानम् मेरे मन में स्वाधिकारों का आग्रह छूट रहा है। जो कुछ है, वह केवल मेरा नहीं, सबका है। इस पर्युषण वेला पर जो कुछ मेरे अधीन रहा है, उसकी ममता को बिसरा कर सर्वहित में प्रदान कर रहा हूं।
तस्स भंते पडिक्कमामि गत वर्ष, गत जीवन में मुझसे कुछ चरित्रात्मक त्रुटियां हुई हैं, उनका परिमार्जन संशोधन करने के लिए प्रतिक्रमण की विधि स्वीकार करता हूं। जहां-जहां मेरे कदम भटके, बहके, वहां-वहां से वापस लौटने का दृढ़संकल्प इन दिनों लेता हूं। मेरा अतीत फिर मेरा पीछा नहीं करेगा।
पच्क्खाणेणं आसव दाराइं निरुंभइ अपने भविष्य को पवित्र, निर्मल बनाने के लिए मैं प्रत्याख्यान का आश्रय लेता हूं। कोई अकरणीय कार्य नहीं करूंगा। अनाचरणीय आचरण नहीं करूंगा। अकथनीय कथन नहीं करूंगा।
इन आठ संकल्पों से पर्युषण का यह अनोखा पर्व मनाने का आदेश तीर्थंकर प्रभु महावीर स्वामी ने दिया है।