प्रवीण नांगिया (ज्योतिष सलाहकार):
इस साल कामदा एकादशी 19 अप्रैल को है। चैत्र शुक्ल की एकादशी व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है। इस दिन पूजा करने से भगवान विष्णु का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है।
कामदा एकादशी को चैत्र शुक्ल एकादशी भी कहते हैं। हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व माना जाता है।
वर्षभर में 24 एकादशी मनाई जाती हैं, जिनमें से प्रत्येक का अपना-अलग फल और महत्व होता है। कामदा एकादशी के दिन श्रद्धालु भगवान विष्णु की पूजा करेंगे। यहां पढ़ें कामदा एकादशी व्रत कथा-
कामदा एकादशी की व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को कामदा एकादशी की व्रत की कथा सुनाई थी। इनके अलावा भगवान राम के पूर्वज राजा दिलीप ने भी कामदा एकादशी का महत्व और कथा गुरु वशिष्ठ से सुनी था। कथा के अनुसार प्राचीनकाल में पुंडरीक नाम का एक राजा राज्य करता था।
वह भोंगीपुर नगर में रहता है। राजा प्रजा का ध्यान नहीं रखता था और हर वक्त भोग-विलास में डूबा रहता। उसके ही राज्य में एक पति-पत्नी रहते थे जिनका नाम ललित और ललिता था, दोनों आपस में सच्चा प्यार करते थे।
ललित राजा के यहां संगीत सुनाता था, एक दिन राजा की सभा में ललित संगीत सुना रहा था कि तभी उसका ध्यान अपनी पत्नी की ओर चला गया और उसका स्वर बिगड़ गया। इसे देखकरराजा पुंडरीक का क्रोध सातवें आसमान पर पहुंच गया। राजा इतना क्रोधित हुआ कि उसने क्रोध में आकर ललित को राक्षस बनने का श्राप दे दिया।
राजा के श्राप से ललित मांस खाने वाला राक्षस बन गया। अपने पति का हाल देख ललिता बहुत दुखी हुई। पति को ठीक करने के लिए हर किसी से उपाय पूछती रही। आखिरकार थक-हारकर वह विंध्याचल पर्वत पर श्रृंगी ऋषि के आश्रम पहुंची और ऋषि से अपने पति का सारा हाल बताया। ऋषि ने ललिता को कामदा एकादशी का व्रत करने की सलाह दी।
ऋषि ने कामदा एकादशी का व्रत का प्रताप बताया और ललिता से इस व्रत को करने को कहा। ललिता ने ऋषि के बताए अनुसार शुक्ल पक्ष की कामदा एकादशी का व्रत रखा और भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए विधि-विधान से पूजा अर्चना की। अगले दिन द्वादशी को पारण कर व्रत को पूरा किया।
भगवान विष्णु की कृपा से उसके पति को फिर से मनुष्य योनि मिली और राक्षस योनि से मुक्त हो गया। इस तरह दोनों का जीवन हर तरह के कष्ट से मिटे और वे सुखी जीवन जीने लगे। फिर श्रीहरि का भजन-कीर्तन करते दोनों मोक्ष को प्राप्त हुए।