अयोध्या का राम मंदिर इन दिनों देश और दुनिया में चर्चा में है।
22 जनवरी को यहां पर प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम होने वाला है। लेकिन क्या आपको पता है कि एक राम मंदिर पाकिस्तान में भी है। इस राम मंदिर की कहानी काफी प्राचीन है।
दावा तो यहां तक जाता है कि भगवान श्रीराम जब वनवास के लिए निकले थे तो वह यहां पर रुके भी थे।
कुछ वक्त पहले ब्रिटिश मूल के रहने वाले एक व्यक्ति ने इस राम मंदिर का वीडियो बनाकर यू-ट्यूब पर भी डाला था। आइए आपको बताते हैं आखिर पाकिस्तान का यह राम मंदिर क्यों है इतना खास…
16वीं सदी में मंदिर बनाने का दावा
कार्ल राइस उर्फ कार्ल रॉक नाम के न्यूजीलैंड के निवासी हैं, जिनका इसी नाम से यू-ट्यूब चैनल है। कार्ल हिंदी भी बोलते हैं। दो साल पहले कार्ल पाकिस्तान गए थे, जहां पर उन्होंने इस राम मंदिर का वीडियो बनाया था।
कार्ल के मुताबिक यह मंदिर पाकिस्तान के सैयदपुर गांव में स्थित है। यह गांव इस्लामाबाद शहर में है। कार्ल ने अपने वीडियो में दावा किया है कि 14 वर्ष के वनवास के समय यहां पर भगवान राम ने कुछ वक्त बिताया था।
इस दौरान उन्होंने यहां के कुंड में पानी पीया था, जिसे राम कुंड के नाम से जाना जाता है और मंदिर को राम कुंड मंदिर। इसके अलावा अपने वीडियो में उन्होंने लक्ष्मण कुंड और सीता कुंड भी वहां होने का दावा किया है।
कार्ल के अनुसार इस मंदिर को 16वीं सदी में बनाया गया था। बताया जाता है कि इस मंदिर पर मेला लगता था और दूर-दूर से श्रद्धालु आते थे।
हालांकि बंटवारे के बाद से यह परंपरा बंद हो गई। यहां तक कि मंदिर के अंदर से मूर्तियां भी हटा दी गई हैं।
गजेटियर में भी है मंदिर का जिक्र
पाकिस्तान में राम मंदिर होने की बात बीबीसी की एक रिपोर्ट में भी बताई गई है। इस रिपोर्ट के मुताबिक इस्लामाबाद में पुराने वक्त में तीन मंदिर थे।
एक सैयदपुर गांव, दूसरा रावल धाम के पास और तीसरा गोलरा के फेसस दारगढ़ के पास है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि साल 1950 में हुए लियाकत-नेहरू समझौते में इन पवित्र जगहों को शरणार्थी संपत्ति ट्रस्ट को देना था।
लेकिन ऐसा हुआ नहीं। रिपोर्ट में इस्लामाबाद की कायदे आजम यूनिवर्सिटी के आर्कियोलॉजी विभाग के प्रोफेसर सादिद आरिफ का भी जिक्र है।
प्रोफेसर आरिफ ने रावलपिंडी गजेटियर से कुछ इंफॉर्मेशन जुटाई है, जिसके मुताबिक सैयदपुर गांव सन 1848 में बस चुका था।
इसमें राम मंदिर, गुरुद्वारा और धर्मशाला भी थी। करीब आठ हजार लोग हर साल यहां दर्शन करने आते थे।
हालांकि बंटवारे के बाद हालात बदल गए और यहां के तमाम हिंदू भारत में बस गए। इसके बाद इन जगहों को शत्रु संपत्ति करार देकर सील कर दिया गया।