बेटे की चाहत में दूसरी शादी, पहली ने बेटा जन्मा तो छोड़ दिया; दो बीवियां रख रहे पति को हाई कोर्ट ने लगाई फटकार…

जब शादी के कुछ साल तक लड़का नहीं हुआ तो उसने दूसरी शादी रचा ली।

दूसरी पत्नी से उसे एक बेटा हो गया। कुछ वक्त बाद समझौते से पहली पत्नी भी साथ रहने लगी।

सबकुछ अच्छा चल रहा था कि तभी पहली पत्नी को भी बेटा हो गया और फिर दूसरी पत्नी को दूसरा बेटा। बस यहीं से पति-पत्नी में अनबन शुरू हो गई।

मामला यूं है कि महिला का आरोप है कि पहली पत्नी के कहने पर उसे घर से निकाल दिया गया। बाद में भरण-पोषण के लिए भत्ता  भी देने से इनकार कर दिया गया।

इसके बाद महिला ने हार नहीं मानी और लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी। बॉम्बे हाई कोर्ट ने मामले में पति को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि पहली शादी के बरकरार रहते हुए उसने दूसरी शादी की और अब दूसरी पत्नी को अलग करके वह उसके भरण-पोषण की जिम्मेदारी से पीछे नहीं हट सकता। 

बॉम्बे हाई कोर्ट ने तमाम दलीलों को सुनने के बाद माना है कि उस व्यक्ति ने 1989 में ‘पुनर्विवाह’ किया था, जबकि उसकी पहली शादी कानूनी रूप से बरकरार थी।

ऐसे में वह अब जब ‘दूसरी पत्नी’ से अलग होना चाहता है तो उसे भरण-पोषण भत्ता देने इनकार नहीं कर सका।

शख्स की दूसरी पत्नी, जो अब 55 वर्ष की हो चुकी है, ने कोर्ट में दावा किया कि उसके पति ने उसे यह विश्वास दिलाया था कि उससे शादी करने से पहले उसने (पति ने) अपनी पत्नी को इसलिए तलाक दे दिया था, क्योंकि वह बेटा जन्म नहीं दे पा रही थी।

क्या है मामला
दरअसल, शख्स ने साल 1989 में दूसरी शादी की थी। महिला का आरोप है कि उसने यह कहकर उससे शादी की कि पहली पत्नी बेटा नहीं पैदा कर पा रही है।

दूसरी पत्नी को बेटा हुआ तो पहली पत्नी भी साथ रहने लगी। फिर पहली पत्नी को भी बेटा हो गया और कुछ वक्त बाद दूसरी वाली को दूसरा बेटा।

इस तरह पूरा परिवार चल रहा था। दिसंबर 2012 में दूसरी पत्नी ने अपने पति पर बदसलूकी का आरोप लगाते हुए येवला मैजिस्ट्रेट कोर्ट की शरण ली और भरण-पोषण के लिए मासिक भत्ता मांगा। साल 2015 में कोर्ट ने शख्स को आदेश दिया कि वह उसे मासिक भत्ते के तौर पर 2500 रुपए देगा।

2011 तक सबकुछ ठीक-ठाक चल रहा था, लेकिन महिला का आरोप है कि पहली वाली के कहने पर पति ने मासिक भत्ता देना बंद कर दिया है।

अब महिला ने हाई कोर्ट की शरण ली। हाई कोर्ट ने पति को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि जब उसने दूसरी शादी की है तो वह उसे भरण पोषण के लिए भत्ता देने से इनकार नहीं कर सकता।

न्यायमूर्ति राजेश पाटिल की एचसी एकल-न्यायाधीश पीठ ने 14 दिसंबर को पत्नी के भरण-पोषण के लिए कानूनी प्रावधानों के तहत 2,500 रुपये के मासिक भरण-पोषण के लिए एक मजिस्ट्रेट द्वारा पारित 2015 के आदेश को बरकरार रखा।

हाई कोर्ट ने महिला को गुजारा भत्ता राशि बढ़ाने के लिए नई याचिका दायर करने की भी अनुमति दी। 

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