PMLA यानी धन-शोधन निवारण अधिनियम के कुछ प्रावधानों को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का दौर जारी है।
इसी बीच बुधवार को अदालत में बेंच की सदस्य रहीं जस्टिस बेला एम त्रिवेदी और सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल के बीच तीखी नोकझोंक हो गई। त्रिवेदी के अलावा जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस संजीव खन्ना भी बेंच का हिस्सा हैं।
जस्टिस त्रिवेदी ने सिब्बल के राजनीतिक करियर को लेकर सवाल पूछ लिए। उन्होंने कहा कि जब PMLA लागू किया गया था, तब सिब्बल विपक्ष में थे या सत्तारूढ़ पार्टी का हिस्सा थे।
खास बात है कि एडवोकेट कानून के खिलाफ बात कर रहे थे। PMLA को साल 2002 में संसद में पास किया गया था, लेकिन 2005 में इसे लागू किया गया। उस दौरान देश में कांग्रेस की अगुवाई वाली UPA सरकार थी।
खास बात है कि तब सिब्बल सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा थे। उन्होंने कहा, ‘मैं 35 सालों तक विधायक रहा, विपक्ष में भी रहा…। मैंने कभी भी ऐसा कानून नहीं देखा।
‘ इस पर त्रिवेदी ने सवाल पूछा, ‘साल 2002 (2005) में क्या आप विपक्ष में थे?’ सिब्बल ने कहा, ‘हो सकता है कि इसे एक पार्टी ने लागू किया हो और संशोधित किया हो, लेकिन हमने कभी नहीं सोचा था कि इसे इस तरह लागू किया जाएगा। जो लेडीशिप पूछ रही हैं, वह विवादास्पद है।’
जस्टिस त्रिवेदी ने कहा, ‘मैं बस यह पूछ रही हूं कि क्या आप उस साल विपक्ष में थे…।’ सिब्बल ने कहा, ‘इसका असर काफी बड़ा है। इससे मिलने वाली शक्तियों के चलते यह हमारे देश की राजनीति पर असर डालता है। यह खतरनाक है।’
समन पर सवाल
जस्टिस त्रिवेदी ने समन को लेकर भी सवाल पूछे। उन्होंने कहा, ‘समन में आपके गवाह के तौर पर भी बुलाया जा सकता है।
हो सकता है कि आप आरोपी के बारे में कुछ जानते हों। समन कैसे अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करते हैं? जब आपको जानकारी देने के लिए कहा जाता है, तो क्या यह जीवन और आजादी से आपको वंचित करती है?’
सिब्बल ने कहा, ‘लेकिन मुझे यह पता होना चाहिए कि मुझे क्यों बुलाया गया है। CrPC के ह्रदय में आजादी है और जब हमें CrPC की धारा 161 के तहत बुलाया जाता है, तो हम गवाह कहलाते हैं। लेकिन यहां कुछ स्पष्ट नहीं है, क्योंकि मैं मेरे संवैधानिक अधिकारों का इस्तेमाल नहीं कर सकता, क्योंकि मुझे नहीं पता कि मुझे क्यों बुलाया गया और मुझे गिरफ्तार भी किया जा सकता है।’
क्या है मामला
जस्टिस कौल, जस्टिस खन्ना और जस्टिस त्रिवेदी की पीठ कुछ मापदंडों पर तीन न्यायाधीशों की पीठ द्वारा 27 जुलाई, 2022 के फैसले पर पुनर्विचार के अनुरोध वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। उस फैसले में, शीर्ष अदालत ने पीएमएलए के तहत गिरफ्तारी, धन शोधन में शामिल संपत्ति की कुर्की, तलाशी और जब्ती की ईडी की शक्तियों को बरकरार रखा था।