जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग धीरे-धीरे दुनिया का नक्शा बदल रही है।
संयुक्त राष्ट्र की नई रिपोर्ट बताती है कि सदी के अंत तक दुनिया 3 डिग्री सेल्सियस तक और गर्म हो जाएगी।
सोमवार को जारी इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इस साल के शुरुआती 86 दिन में ही धरती 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान की सीमा पार कर चुकी हैं, जो काफी ज्यादा है।
रिपोर्ट में इसके पीछे का कारण वैश्विक ग्रीनहाउस गैस का अत्यधिक उत्सर्जन बताया गया है।
संयुक्त राष्ट्र ने सोमवार को पर्यावरण कार्यक्रम से जुड़ी वार्षिक रिपोर्ट जारी की। रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में दुनिया के सभी देशों ने मिलकर 57.4 बिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित किया, जो 2021 की तुलना में 1.2 प्रतिशत ज्यादा है।
रिपोर्ट में इस बात पर चिंता जताई गई है कि 2020 में कोरोना महामारी के चलते गैस उत्सर्जन में कमी जरूर आई थी, लेकिन 2021 में और फिर 2022 में ग्रीन हाउस गैसों की अत्यधिक खपत ने फिर से खतरनाक स्तर पा लिया है।
कहां ज्यादा खपत
जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन सबसे अधिक चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका में होता है। 2020 में कमी आने के बाद 2022 में इसमें अप्रत्याशित बढ़ोत्तरी हुई है।
दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा उत्सर्जक भारत है। हालांकि राहत की बात यह है कि यूरोपीय संघ, रूस और ब्राजील देशों में थोड़ी कमी देखी गई है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि भले ही पेरिस समझौते में शामिल देशों ने जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के कारणों को कम करने का वादा किया है, फिर भी मौजूदा हालातों को देखते हुए कहा जा सकता है कि साल 2030 तक वैश्विक गैस उत्सर्जन कम से कम 19 बिलियन टन कार्बन डाई ऑक्साइड के बराबर होगा जो पर्यावरण के लिए बहुत खतरनाक है।
कैसे बचेगा पर्यावरण
रिपोर्ट में कहा गया है कि पर्यावरण को बचाने के लिए वैश्विक गैस उत्सर्जन में कमी लानी जरूरी है।
साल 2024 से हर साल गैस उत्सर्जन में कम से कम 8.7 प्रतिशत की गिरावट होना चाहिए। इसमें कहा गया है कि पर्यावरण को बचाने के लिए शीघ्र कार्रवाई जरूरी है क्योंकि विषैली गैसों के दोहन ने दुनिया को ऐसी स्थिति में ला दिया है कि हमने महज 86 दिनों में ही अधिकतम सीमी 1.5 सेल्सियस को पीछे छोड़ दिया है।
दुनिया के दिग्गज देशों की निष्क्रियता का दुष्परिणाम यह है कि वर्ष 2023 ने गर्मी के सभी रिकॉर्ड तोड़ दिए। साल के लगभग हर महीने ने कोई न कोई तापमान रिकॉर्ड बनाया है। सितंबर पिछले वर्षों की तुलना में अब तक का सबसे गर्म महीना बनकर उभरा है।
बता दें कि 2015 में दुनिया के 75 देशों ने पेरिस समझौते के तहत जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग से बचने के लिए वैश्विक गैस का कम से कम उत्सर्जन का वादा किया था।
इसमें लक्ष्य यह निर्धारित किया गया था कि इससे दुनिया के तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा वृद्धि न हो। बीते साल दिसंबर में 195 देशों ने पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर करके सदी के अंत तक वैश्विक तापमान की सीमा 2 डिग्री सेल्सियस रखने का लक्ष्य रखा था।