सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लंबित मामले निपटाने और सुनवाई टालने के तरीकों पर अंकुश लगाने के लिए सक्रिय कदम उठाने तत्काल जरूरत है।
अदालत ने कहा कि भारत में लगभग छह प्रतिशत आबादी मुकदमेबाजी में उलझी है, ऐसे में अदालतों की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है।
अदालत ने कई निर्देश जारी करते हुए कहा कि सभी स्तरों पर लंबित मामलों के निपटारे के लिए सक्रिय कदम उठाने की तत्काल आवश्यकता है।
यही नहीं अदालत ने आगे कहा कि त्वरित न्याय चाहने वाले वादियों की आकांक्षाएं पूरा करने और सुनवाई टालने के तरीकों पर अंकुश लगाने को सभी हितधारकों को आत्मनिरीक्षण करने की भी जरूरत है।
न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट (सेवानिवृत्त) और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने शुक्रवार को दिए गए आदेश में जिला और तालुका स्तर की सभी अदालतों को समन की तामील कराने, लिखित बयान दाखिल करने, दलीलें पूरी करने, याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार या इनकार करने की रिकॉर्डिंग और मामलों के त्वरित निपटारे आदि के निर्देश दिए।
पीठ ने पांच साल से अधिक समय से लंबित पुराने मामलों की लगातार निगरानी के लिए संबंधित राज्यों के मुख्य न्यायाधीश द्वारा समितियों के गठन का भी निर्देश दिया।
अदालत ने कहा कि लोग न्याय की आस में अपने वाद दायर करते हैं, इसलिए सभी हितधारकों को यह सुनिश्चित करने की बड़ी जिम्मेदारी है कि न्याय मिलने में देरी के कारण इस प्रणाली में लोगों का विश्वास कम न हो।
समयबद्ध तरीके समन तामील कराएं
सुप्रीम कोर्ट ने जिला और तालुका स्तर पर सभी अदालतों को नागरिक प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) के आदेश-5, नियम (2) के तहत निर्धारित समयबद्ध तरीके से समन की तामील कराना सुनिश्चित करने का निर्देश दिया। आदेश में कहा गया कि मुकदमे के बाद मौखिक दलीलें तुरंत और लगातार सुनी जाएंगी और निर्धारित अवधि में फैसला सुनाया जाएगा।
43 साल से चल रहा मुकदमा
न्यायालय ने यह आदेश यशपाल जैन की याचिका पर दिया, जिन्होंने एक दीवानी मुकदमे में उत्तराखंड हाईकोर्ट के 2019 के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था।
वहां एक स्थानीय अदालत में 43 साल पहले शुरू हुआ यह मामला अब भी जारी है। पीठ ने हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया और निचली अदालत से जैन की याचिका पर छह महीने में फैसला करने को कहा।