अगले सप्ताह दक्षिण अफ्रीका में ब्रिक्स (BRICS) देशों का शिखर सम्मेलन होने जा रहा है।
17 साल पुराने इस समूह के लगभग सभी बड़े नेता जब समिट में हिस्सा लेने के लिए इकट्ठा होंगे, तो उनका फोकस ब्रिक्स के विस्तार पर होगा।
हालांकि मामले से परिचित लोगों ने कहा कि पांच सदस्य देशों के इस समूह में विस्तार को लेकर आम सहमति नहीं बन पाई है। बता दें कि BRICS में ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं।
चीन लंबे समय से ब्रिक्स के विस्तार को लेकर पूरा जोर लगा रहा है। ड्रैगन इस समूह का विस्तार करने पर इसलिए अड़ा है ताकि वह वैश्विक मामलों में पश्चिमी प्रभुत्व को खत्म कर खुद का दबदबा बना सके।
हालांकि भारत इसके विरोध में है। वैसे इन प्रयासों में चीन को रूस का समर्थन मिला है। रूस वर्तमान में यूक्रेन युद्ध के कारण अपने राजनयिक अलगाव से जूझ रहा है।
40 देशों ने जताई इच्छा
लगभग 40 देशों ने ब्रिक्स में शामिल होने में रुचि व्यक्त की है। इनमें अर्जेंटीना, क्यूबा, मिस्र, ईरान, इंडोनेशिया, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) जैसे देश शामिल हैं। अगर ब्रिक्स का विस्तार होता है, तो यह 13 साल में पहली बार ऐसा होगा।
इससे पहले सितंबर 2010 में दक्षिण अफ्रीका को समूह में शामिल किया गया था।
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को छोड़कर, ब्रिक्स देशों के अन्य नेता 15वें शिखर सम्मेलन के लिए 22-24 अगस्त के दौरान जोहान्सबर्ग में एकत्र होंगे। यूक्रेन में कथित युद्ध अपराधों पर अंतरराष्ट्रीय गिरफ्तारी वारंट का सामना कर रहे पुतिन फिलहाल वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए इसमें भाग लेंगे।
इस समिट में एक आम मुद्रा (कॉमन करेंसी) की स्थापना का विवादास्पद मुद्दा भी उठाए जाने की उम्मीद है। जानकारों ने कहा कि इस मुद्दे पर भी पांचों सदस्यों के बीच दूरियां हैं।
लगभग 40 देशों ने ब्रिक्स में शामिल होने में रुचि व्यक्त की है। इनमें अर्जेंटीना, क्यूबा, मिस्र, ईरान, इंडोनेशिया, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) जैसे देश शामिल हैं।
अगर ब्रिक्स का विस्तार होता है, तो यह 13 साल में पहली बार ऐसा होगा। इससे पहले सितंबर 2010 में दक्षिण अफ्रीका को समूह में शामिल किया गया था।
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन को छोड़कर, ब्रिक्स देशों के अन्य नेता 15वें शिखर सम्मेलन के लिए 22-24 अगस्त के दौरान जोहान्सबर्ग में एकत्र होंगे।
यूक्रेन में कथित युद्ध अपराधों पर अंतरराष्ट्रीय गिरफ्तारी वारंट का सामना कर रहे पुतिन फिलहाल वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए इसमें भाग लेंगे। इस समिट में एक आम मुद्रा (कॉमन करेंसी) की स्थापना का विवादास्पद मुद्दा भी उठाए जाने की उम्मीद है। जानकारों ने कहा कि इस मुद्दे पर भी पांचों सदस्यों के बीच दूरियां हैं।
ब्रिक्स चीन-केंद्रित समूह न बन जाए
विस्तार को लेकर भारतीय पक्ष की सबसे बड़ी चिंता यह है कि ब्रिक्स चीन-केंद्रित समूह न बन जाए। खासकर ऐसे समय में जब वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर सैन्य गतिरोध के कारण नई दिल्ली और बीजिंग के बीच संबंध अपने सबसे निचले स्तर पर हैं। सूत्रों ने कहा, “निश्चित रूप से, संयुक्त अरब अमीरात जैसे देश को शामिल करना कोई समस्या नहीं है, लेकिन कुछ देशों के बारे में चिंताएं हैं।”
ब्रिक्स के विस्तार की चर्चा पिछले साल से जोर पकड़ रही है। लेकिन भारतीय पक्ष ने उन बदलावों पर ध्यान केंद्रित करने की मांग की जो समूह को अधिक मजबूती और सुसंगतता प्रदान करेंगे। मामले से परिचित एक व्यक्ति ने कहा, “ब्रिक्स प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने और कुछ मौजूदा तंत्रों पर काम करने की आवश्यकता है। अन्य समूहों के विपरीत, ब्रिक्स के पास अभी भी कोई निश्चित सचिवालय नहीं है।”