पत्रकार और लेखक तारिक फतेह का निधन हो गया है।
1949 में कराची में जन्मे तारिक फतेह को भारत के मामलों की भी अच्छी जानकारी थी। इसके अलावा इस्लाम से जुड़े मुद्दों पर भी वह मुखरता के साथ अपनी राय रखने के लिए जाने जाते थे।
तारिक फतेह की बेटी नताशा ने उनकी मौत की पुष्टि की है। नताशा ने ट्वीट कर लिखा, ‘पंजाब के शेर, हिन्दुस्तान के बेटे, कनाडा के प्रेमी, सत्य के वक्ता और न्याय के योद्धा का निधन हो गया है।
उनकी क्रांति उन लोगों के जरिए बनी रहेगी, जो उन्हें जानते थे और प्यार करते थे।’
तारिक फतेह खुद को हिंदुस्तानी ही कहते थे और पाकिस्तान को भी भारतीय संस्कृति का ही हिस्सा मानते थे। भारत विभाजन को गलत बताते हुए वह दोनों देशों की एक ही संस्कृति की बात करते थे।
धार्मिक कट्टरता के खिलाफ रहे तारिक फतेह भारतीय संस्कृति के मुरीद थे और उसे ही भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश को एक साथ जोड़ने का सूत्र मानते थे।
कराची में जन्मे तारिक फतेह ने 1987 में कनाडा का रुख कर लिया था और फिर वहीं बस गए थे। रिपोर्टर के तौर पर करियर की शुरुआत करने वाले तारिक फतेह स्तंभकार रहे।
इसके अलावा रेडियो और टीवी पर भी वह कॉमेंट्री करते रहे थे। उनकी सोशल मीडिया पर भी अच्छी खासी फॉलोइंग थी।
तारिक फतेह कई भाषाओं के जानकार थे। उनकी हिंदी, इंग्लिश, उर्दू, पंजाबी और अरबी जैसी भाषाओं पर समान पकड़ थी। तारिक फतेह को ह्यूमन राइट्स ऐक्टिविस्ट के तौर पर भी जाना जाता था।
भारतीय टीवी चैनलों में भी बीते कुछ सालों से वह नजर आते थे और अपनी बेबाक टिप्पणियों के लिए जाने जाते थे। वह पाकिस्तान से ज्यादा अपनी पहचान भारत से ही जोड़ते थे।
उन्होंने ‘यहूदी मेरे दुश्मन नहीं हैं’ शीर्षक से एक पुस्तक भी लिखी थी। यही नहीं पाकिस्तान में बलूचों के आंदोलन के भी वह समर्थक थे और पाकिस्तान की बर्बरता के तीखे आलोचक के तौर पर जाने जाते थे।